न्यूयॉर्क। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर यूनिसेफ ने एक चौंकाने वाली रिपोर्ट पेश की है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में महिला जननांग विकृति (फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन- एफजीएम) के सर्वाइवर की संख्या 230 मिलियन (23 करोड़) से अधिक है। हालांकि कुछ देशों में इस प्रथा के खिलाफ काम किए गए हैं, जिसके बावजूद 2016 के बाद से 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी आंकड़ों में देखी गई हैं। बता दें, एफजीएम की प्रथा कई सालों से चली आ रही हैं। कुछ समाजों में इस प्रथा को लड़कियों की पवित्रता सुनिश्चित करने के लिए जरूरी माना जाता है।
रिपोर्ट जारी करने वाली प्रमुख लेखिका क्लाउडिया कोप्पा के अनुसार जिन लड़कियों का एफजीएम नहीं हुआ है, उनसे शादी नहीं की जाती। बता दें, एफजीएम के चौंकाने वाले आंकड़े सोमालिया से आए हैं, जहां 15 से 49 वर्ष के बीच की 99% महिलाओं को जननांग विकृति का सामना करना पड़ा है, साथ ही गिनी में 95%, जिबूती में 90% और माली में 89% महिलाओं ने जननांग विकृति का सामना किया है। यूनिसेफ प्रमुख कैथरीन रसेल ने कहा कि यह प्रथा कम उम्र में, कई लोग अपने पांचवें जन्मदिन से पहले ही शुरू कर देते हैं।
अफ्रीका में सबसे अधिक केस
31 देशों के सर्वे के अनुसार, एफजीएम के सर्वाइवरों की संख्या सबसे अधिक अफ्रीका में है, 144 मिलियन से अधिक सर्वाइवर अफ्रीका में रहते है। वहीं ये संख्या एशिया में (80 मिलियन) और मध्य पूर्व में (6 मिलियन) से ज्यादा है। हालांकि एफएमजी की संख्या यूनीसेफ के लगातार प्रयास से कम हुई है।
क्या होता है एफजीएम
- महिला जननांग विकृति, जिसे एफजीएम के रूप में जाना जाता है, इस प्रथा में भगशेफ (clitoris) के साथसाथ लेबिया मिनोरा ((labia minora) को आंशिक या पूरी तरह से हटा दिया जाता है और इसे बंद करने के लिए योनि में टांके लगाए जाते हैं।
- एफजीएम से बहुत ज्यादा खून बहने का डर रहता है या ये किसी दूसरी बीमारी की बड़ी वजह बन सकता है।
- इससे महिलाओं को कई और समस्याएं भी हो सकती हैं। जैसे- बच्चे पैदा करने में समस्या, मृत बच्चे का जन्म।
- कुछ समाजों में, इस प्रथा को लड़कियों की पवित्रता सुनिश्चित करने के लिए जरूरी माना जाता है।
बदलाव की तरफ एक कदम
वर्ष 2030 तक इस प्रथा को खत्म करने के लिए नोप्रोग्रेस को मौजूदा स्तर से 27 गुना तक बढ़ाने की जरूरत है। लेकिन ये प्रथा सालों से चली आ रही है, इसलिए प्रथाओं को बदलने में समय लगेगा। यूनिसेफ इस प्रथा को खत्म करने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। – क्लाउडिया कोप्पा, प्रमुख लेखिक, यूनिसेफ