जबलपुरमध्य प्रदेश

एमपी पीएससी परीक्षा नियमों की वैधानिकता को हाई कोर्ट में चुनौती

अदालत ने दिए डेटा पेश करने के निर्देश, 14 को होगी सुनवाई

जबलपुर।  मध्य प्रदेश राज्य परीक्षा नियम 2015 में किए गए संशोधन को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में लगभग 4 दर्जन याचिकाएं दायर की गयीं थीं। याचिका में पीएससी परीक्षा 2019 को निरस्त करने की राहत चाही गयी है। चीफ जस्टिस मो. रफीक व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने राज्य सरकार एवं पीएससी को अनारक्षित श्रेणी में आरक्षित श्रेणी के छात्रों के चयन संबंधित डाटा प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं। याचिका पर अगली सुनवाई 14 सितम्बर को निर्धारित की गयी है, हालांकि विस्तृत आदेश की फिलहाल प्रतीक्षा है।

दायर याचिकाओं में मध्य प्रदेश राज्य परीक्षा नियम 2015 में 17 फरवरी 2020 को किए गए संशोधन की संवैधनिकता को चुनौती देते हुए पीएससी परीक्षा 2019 को निरस्त करने की राहत चाही गई है। याचिका में कहा गया था कि संशोधित नियम आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान अभ्यार्थियों को अनारक्षित वर्ग में चयन से रोकते हैं। जो इंद्रा साहनी के निर्णय से असंगत है तथा संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 तथा 21 का उल्लंघन करते हुए कम्युनल आरक्षण लागू करता है।

मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा नवम्बर 2019 के राज्य सेवा एवं वन सेवा में रिक्त पदों की पूर्ति हेतु विज्ञापन जारी किया था। प्रारंभिक परीक्षा जनवरी 2020 में आयोजित की गई तथा 21 दिसंबर 2020 को संशोधित नियमानुसार रिजल्ट जारी किए गए। जिसमें अनारक्षित वर्ग के लिए 40 प्रतिशत, ओबीसी वर्ग के लिए 27 तथा एसटी-एससी वर्ग के लिए क्रमश: 16 तथा 20 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण निर्धारित किया गया है। इस प्रकार पीएससी द्वारा 113 फीसदी आरक्षण लागू किया गया।

पुराने नियमों का दिया हवाला

अनारक्षित वर्ग में सिर्फ अनारक्षित वर्ग के अभ्यार्थियों को ही रखा गया जबकि पुराने नियमों के अनुसार अनारक्षित वर्ग में आरक्षित एवं अनारक्षित वर्ग के प्रतिभावान छात्रों को ही चयन किया जाता था। युगलपीठ ने याचिका की सुनवाई करते हुए उक्त आदेश जारी किए। युगलपीठ ने भर्ती में दिए गए आरक्षण के प्रतिशत को भी स्पष्ट करने के निर्देश दिए हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक कृष्ण तन्खा एवं वरिष्ठ अधिवक्ता इन्द्रा जयसिंह तथा रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक शाह ने पक्ष रखा।

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