प्रीति जैन- सीएम राइज शा. महात्मा गांधी उमा. विद्यालय, भेल के विद्यार्थियों ने गौरैया चिड़िया के संरक्षण के लिए लकड़ी के घोंसले अपनी मार्गदर्शक शिक्षिका डॉ. अर्चना शुक्ला के गाइडेंस में तैयार किए हैं, जो कि एक आर्निथोलॉजिस्ट भी है। इतना ही नहीं स्कूल के 11वीं के बायो के स्टूडेंट्स को अपने इस प्रोजेक्ट के लिए मप्र टाइगर फाउंडेशन से 1 लाख रुपए की सीड मनी भी मिली है। वहीं मप्र स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा छात्रों को स्टार्टअप शुरू करने में मदद करने के लिए चलाए जा रहे तेजस्वी प्रोजेक्ट के तहत भी इन बच्चों को इंवेस्टमेंट मिलने वाला है, जिससे यह अपना काम आगे बढ़ा सकेंगे। यह राशि सात छात्रों को मिलेगी, जो कि लगभग 14000 रुपए होगी। विश्व गौरैया दिवस (20 मार्च) के अवसर पर जानिए किस तरह आप भी दे सकते हैं, आंगन में फुदकने वाली गौरैया को आशियाना।
छात्रों के बनाए स्पैरो हाउस की दूसरे शहरों से आई डिमांड
तीन साल तक अलग-अलग तरह के गौरैया को पसंद आने वाले घोंसले बनाए लेकिन कार्डबोर्ड के घोंसले गल जाते थे। गौरैया भूरे रंग के घोंसले पसंद करती हैं यह समझ आया। फिर फर्नीचर शॉप से वुडन स्क्रैप लेकर ऐसे स्पैरो हाउस बनाए, जिसमें गौरैया के घुसने लायक छेद किया गया। पहले जब छेद बड़ा होता था तो दूसरे पक्षी भी घुस जाते थे तो गौरैया डर के मारे दोबारा उनमें नहीं आती थी। गौरैया प्राइवेसी में अंडे देना पसंद करती है, इसलिए उसके लकड़ी के बने घोंसले पर मिट्टी का लेप किया गया। लकड़ी के स्पैरो हाउस की डिमांड दिल्ली, मुंबई और नोएडा से आई है। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया, लेबनान, इंडोनेशिया में टीचर्स को ऑनलाइन वर्कशॉप में इन्हें बनाना सिखाया है। -डॉ. अर्चना शुक्ला, आर्निथोलॉजिस्ट
पानी की निकासी, वेंटिलेशन का ध्यान
कई तरह के घोंसले डिजाइन किए और फिर उन्हें लगाकर डाटा कलेक्ट किया कि गौरैया उनमें आती है या नहीं। घोंसले पर मिट्टी का लेप किया, पानी की निकासी के लिए छेद और वेंटिलेशन रखा, तो उसमें गौरैया आने लगीं। -स्नेहा यादव, छात्रा
मंदिरों के आसपास लगाए हैं घोंसले
ये घोंसले भेल में मंदिर और उसके आसपास के 200 स्थानों पर लगाए हैं क्योंकि वहां शांति रहती है। कई विजिट के बाद पता चला कि 80 फीसदी घोंसलों में गौरैया आने लगी हैं। अभी घोंसले की कीमत लगभग 200 रुपए आती है। -अमर नवरंग, छात्र