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गंभीर वित्तीय संकट में संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका की फंडिंग रोक से 3000 कर्मचारियों की छंटनी की तैयारी, वोटिंग अधिकार गंवा सकता है US

न्यूयॉर्क। विश्व शांति और सहयोग के सबसे बड़े मंच संयुक्त राष्ट्र (UN) को आज अपनी 80 साल की सबसे गंभीर वित्तीय चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। अमेरिका द्वारा 19 हजार करोड़ रुपए की फंडिंग रोक देने के चलते UN दिवालिया होने की कगार पर है। स्थिति इतनी विकट है कि पांच महीने बाद कर्मचारियों की सैलरी देने के भी पैसे नहीं बचेंगे।

ट्रंप की नीतियों का असर

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने UN को दी जाने वाली अनिवार्य वित्तीय सहायता रोक दी थी। इसमें कुछ हिस्सा वर्तमान बाइडेन प्रशासन के कार्यकाल का भी है। संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक स्थिरता में अमेरिका की प्रमुख भूमिका रही है, लेकिन लगातार देरी और भुगतान न होने से स्थिति बद से बदतर हो रही है।

छंटनी की नौबत, वैश्विक मिशनों में कटौती

UN अब अपने खर्च घटाने के लिए बड़े कदम उठाने की योजना बना रहा है। अनुमान है कि विभिन्न विभागों से लगभग 3000 कर्मचारियों की छंटनी की जाएगी। इसके अलावा, नाइजीरिया, पाकिस्तान और लीबिया जैसे देशों में संयुक्त राष्ट्र के स्टाफ की संख्या में 20% तक कटौती की जाएगी, जिससे इन क्षेत्रों में शांति और विकास मिशनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

अगर भुगतान नहीं हुआ तो अमेरिका 2027 तक वोटिंग से बाहर

संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 19 के अनुसार, कोई भी सदस्य देश यदि दो वर्षों तक अनिवार्य सदस्यता शुल्क नहीं चुकाता, तो उसे महासभा में मतदान का अधिकार नहीं मिलता। यदि अमेरिका 2025 में भी भुगतान नहीं करता है, तो 2027 तक उसे संयुक्त राष्ट्र महासभा में वोट डालने से वंचित रहना पड़ेगा। इससे उसकी अंतरराष्ट्रीय प्रभावशीलता पर भी आंच आ सकती है।

चीन ने भी की देर, लेकिन भुगतान किया

UN के बजट में चीन की हिस्सेदारी 20% है। 2024 में चीन ने अपना फंड 27 दिसंबर को दिया, जिससे संयुक्त राष्ट्र उस पैसे का इस्तेमाल नहीं कर सका। नियमानुसार, यदि समय पर फंड खर्च नहीं हो पाया तो उसे संबंधित सदस्य देशों को वापस करना पड़ता है।

2024 में 41 देशों पर 7 हजार करोड़ बकाया

पिछले वर्ष 41 देशों पर कुल 7 हजार करोड़ रुपए की बकाया राशि रही। अमेरिका, अर्जेंटीना, मेक्सिको और वेनेजुएला जैसे देश इसमें प्रमुख हैं। 2024 में केवल 49 देशों ने समय पर फंडिंग दी, बाकी देशों ने चुप्पी साधे रखी।

20 हजार करोड़ तक पहुंच सकता है नुकसान

संयुक्त राष्ट्र के इंटरनल ऑडिट के अनुसार, 2024 में एजेंसी को कुल 1,660 करोड़ का घाटा हुआ, जबकि उसने कुल बजट का केवल 90% ही खर्च किया। यदि कटौतियां नहीं की गईं, तो 2025 के अंत तक घाटा 20 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है, जो संस्था के अस्तित्व के लिए एक बड़ा खतरा है।

 

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