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तुर्की में विपक्ष के सबसे बड़े नेता इकरम इमामुलू की गिरफ्तारी पर बवाल, राष्ट्रपति एर्दोगान के खिलाफ हो रहा उग्र प्रदर्शन, 5 दिन में 1,100 से अधिक प्रदर्शनकारी हिरासत में

अंकारा। तुर्की में इस्तांबुल के मेयर और प्रमुख विपक्षी नेता इकरम इमामुलू की गिरफ्तारी के बाद राष्ट्रपति रेसेप तैय्यप एर्दोगान के खिलाफ विरोध प्रदर्शन तेज हो गया है। पिछले 5 दिनों में 1100 से अधिक प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया है। सरकार ने स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए इस्तांबुल में सार्वजनिक समारोहों पर चार दिन का प्रतिबंध लगा दिया है। देश के गृह मंत्री अली येरलिकाया ने कहा कि हमारी सड़कों पर आतंक फैलाना और हमारे देश की शांति और सुरक्षा को खतरे में डालना कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

सड़कों पर सरकार विरोधी नारे गूंजे

इस्तांबुल और अन्य प्रमुख शहरों में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें हुईं। सैकड़ों प्रदर्शनकारी सड़कों, यूनिवर्सिटी कैंपस और मेट्रो स्टेशनों पर सरकार विरोधी नारे लगा रहे हैं। सरकार ने राजधानी अंकारा और इस्तांबुल की कई सड़कों और मेट्रो लाइनों को बंद कर दिया है। एर्दोगन सरकार के खिलाफ यह 2013 के गेजी पार्क प्रदर्शन के बाद दूसरा सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन माना जा रहा है।

देशभर में फैले विरोध के बाद सोशल मीडिया पर लगी पाबंदी

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, तुर्की के 81 में से 55 प्रांतों में सरकार विरोधी रैलियां आयोजित की गईं। सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X से 700 से अधिक अकाउंट्स बंद करने का आदेश दिया है। रविवार को इस्तांबुल के सिटी हॉल के बाहर प्रदर्शनकारियों की भारी भीड़ जमा हुई। इस दौरान इकरम इमामुलू की पत्नी दिलेक काया इमामुलू ने सरकार को खुली चुनौती दी।

उन्होंने मंच से चिल्लाते हुए कहा- “वह तुम्हें हरा देगा!… तुम हार जाओगे! इकरम के साथ जो अन्याय किया गया है, उसने हर किसी की अंतरात्मा को झकझोर दिया है।”

क्यों हुई इकरम इमामुलू की गिरफ्तारी

54 वर्षीय इकरम इमामुलू तुर्की के आधुनिक निर्माता मुस्तफा कमाल पाशा की पार्टी रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी (CHP) के नेता हैं। उन्हें 23 मार्च को राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवार के रूप में नामित किया जाना था। लेकिन इससे पहले ही उन्हें भ्रष्टाचार और एक आतंकवादी संगठन की मदद करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर दो बड़े आरोप लगे हैं। पहला, पत्रकारों और कारोबारियों सहित 100 लोगों पर इस्तांबुल नगर पालिका के कुछ टेंडरों में आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने का शक है। इकरम इमामुलू को इस भ्रष्टाचार में शामिल माना गया है।

दूसरा, इमामुलू और छह अन्य लोगों पर कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी की मदद करने का आरोप है। तुर्की सरकार PKK को आतंकवादी संगठन मानती है।

CHP ने गिरफ्तारी को बताया राजनीतिक षड्यंत्र

इकरम इमामुलू की गिरफ्तारी के बाद उनकी पार्टी CHP (रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी) ने इसे राजनीतिक षड्यंत्र और एर्दोगन सरकार का सत्ता में बने रहने की साजिश बताया है।

CHP नेता ओजगुर ओजेल ने कहा कि इमामुलू की गिरफ्तारी से हमारा संघर्ष खत्म नहीं होगा। हम उन्हें राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाएंगे। इसके साथ ही, उन्होंने अन्य विपक्षी दलों से एकजुट होकर इस तानाशाही के खिलाफ लड़ने की अपील की।

इस्तांबुल यूनिवर्सिटी ने इमामुलू की डिग्री रद्द की

इमामुलू की गिरफ्तारी से पहले इस्तांबुल यूनिवर्सिटी ने उनकी डिग्री रद्द कर दी थी। तुर्की के संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार का उच्च शिक्षा प्राप्त करना अनिवार्य है। अगर अदालत अपना फैसला नहीं बदलती, तो इमामुलू को राष्ट्रपति चुनाव लड़ने से रोक दिया जाएगा।

कैसे बने इकरम इमामुलू विपक्षी राजनीति का बड़ा चेहरा

इमामुलू का करियर रियल एस्टेट सेक्टर से शुरू हुआ, लेकिन 43 साल की उम्र में उन्होंने राजनीति में कदम रखा। CHP पार्टी के लिए बेलिकडुजू जिले के मेयर चुने गए। 2019 तक वह ज्यादा लोकप्रिय नहीं थे, लेकिन उसी साल इस्तांबुल के मेयर चुनाव में उन्होंने एर्दोगन के समर्थित उम्मीदवार को हराकर देशभर में सुर्खियां बटोरीं। इस चुनाव में इमामुलू को 41 लाख वोट मिले और उन्होंने 13,000 वोटों से जीत दर्ज की। लेकिन चुनाव अधिकारियों ने अनियमितताओं का आरोप लगाकर चुनाव रद्द कर दिया और उन्हें पद से हटा दिया।

जून 2019 में फिर से चुनाव हुआ, जिसमें उन्होंने अपने विरोधी को 8 लाख वोटों से हराया। यह जीत उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में सफल रही।

क्या एर्दोगन चौथी बार बनेंगे राष्ट्रपति

तुर्किये में 2023 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में एर्दोगन लगातार तीसरी बार विजयी हुए। देश के संविधान के मुताबिक, कोई भी व्यक्ति चौथी बार राष्ट्रपति नहीं बन सकता। लेकिन आलोचकों का मानना है कि एर्दोगन फिर से संविधान में बदलाव कर सकते हैं और समय से पहले चुनाव करा सकते हैं। 2023 के चुनावों में एर्दोगन को निकाय चुनावों में अपनी सबसे बड़ी हार झेलनी पड़ी थी। CHP पार्टी ने कई बड़े शहरों और नगर पालिकाओं में जीत दर्ज की थी, जो पहले एर्दोगन की सत्तारूढ़ AK पार्टी का गढ़ माने जाते थे।

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