
पहलगाम। 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम स्थित बायसरन घाटी में हुए आतंकी हमले के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने अलर्ट जारी कर दिया है। इस हमले में 26 टूरिस्ट की मौत हो गई थी और 17 अन्य घायल हुए थे। अब इंटेलिजेंस सूत्रों ने बताया है कि इस हमले को अंजाम देने वाले आतंकी अभी भी कश्मीर में ही छिपे हुए हैं। उन्होंने अपना ठिकाना खासकर दक्षिण कश्मीर के घने जंगलों को बनाया है।
कहां छिपे हो सकते हैं आतंकी
सूत्रों के अनुसार, आतंकियों के पास पर्याप्त राशन-पानी और संसाधन मौजूद हैं, जिससे वे लंबे समय तक इन पहाड़ी इलाकों में छिपे रह सकते हैं। दक्षिण कश्मीर के चार जिले शोपियां, पुलवामा, कुलगाम और अनंतनाग ऐसे हैं जहां कई घने जंगल आतंकियों के लिए मुफीद पनाहगाह साबित होते रहे हैं।
इन जंगलों में खासतौर पर डोरीगुंड, तुर्कवांगाम, रेनावारी, काचलू, हरवान, फ्रिंजाल, शिखरदांद, जैनपोरा, कोकरनाग और पांपोर के आसपास के पहाड़ी क्षेत्र शामिल हैं। इन इलाकों की भौगोलिक बनावट और दुर्गमता इन्हें छिपने के लिहाज से उपयुक्त बनाती है।
त्राल का जंगल आतंकियों की पनाहगाह
त्राल का जंगल दक्षिण कश्मीर का सबसे घना और खतरनाक इलाका माना जाता है। यहां देवदार और पाइन के पेड़ों की भरमार है, जिससे जंगल इतना घना हो जाता है कि धूप तक नहीं पहुंच पाती। इसी प्राकृतिक आवरण का फायदा आतंकी उठाते हैं। हिजबुल मुजाहिदीन, लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों ने यहां लंबे समय तक अपने अड्डे बनाए रखे हैं। बुरहान वानी भी इसी इलाके के जंगलों में कई बार छिपा था।
स्थानीय सहयोग से मिलती है रसद
आतंकी महीनों तक जंगलों में टिके रहते हैं और उन्हें राशन, दवाइयां और अन्य जरूरी चीजें लोकल सपोर्ट के जरिए मिलती रहती हैं। चरवाहों और लकड़ी काटने वालों के रूप में जंगल में जाने वाले लोग शक के दायरे से बाहर रहते हैं। आतंकियों के लिए पहले से तय किए गए ड्रॉप पॉइंट्स पर सामान छोड़ दिया जाता है जिसे वे बाद में ले जाते हैं। गांवों और कस्बों में मौजूद स्लीपर सेल्स के जरिए उन्हें कभी-कभी अस्थायी शरण भी मिलती है। कुलगाम और शोपियां के सेब बागान और सुनसान गोशालाएं भी आतंकियों की छिपने की जगह बन जाती हैं।
सेना को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है
सेना के लिए इन इलाकों में ऑपरेशन चलाना अत्यंत चुनौतीपूर्ण होता है। घने जंगलों की वजह से ड्रोन से निगरानी मुश्किल हो जाती है और मोबाइल नेटवर्क की कमी के कारण किसी भी आपात निर्णय में समय लग सकता है। बारिश और बर्फबारी के मौसम में इलाके और अधिक खतरनाक हो जाते हैं।
मानवीय पहलू भी इन ऑपरेशनों को जटिल बना देते हैं। स्थानीय नागरिकों की मौजूदगी की वजह से सेना को पहले चेतावनी जारी करनी पड़ती है और कई बार पूरे गांव को खाली कराना होता है। इस पूरी प्रक्रिया में समय लगता है और आतंकी इसका फायदा उठाकर भाग निकलते हैं।
अमेरिका ने भारत को दिया पूरा समर्थन
इस हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता टैमी ब्रूस ने शुक्रवार को कहा कि अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ खड़ा है। उन्होंने बताया कि अमेरिका इस हमले की कड़ी निंदा करता है। वहीं, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समर्थन देने की बात कही है।