
रामचन्द्र पाण्डेय-भोपाल। बैगा जनजाति संवेदनशील जनजातीय समूह के रूप में जानी जाती है। बैगा समाज में गोदना की मुख्य परंपरा रही है, लेकिन महिलाएं इससे दूर होती जा रही हैं। बैगा नृत्य कर्मा, ददरिया लोकनृत्य अब विलुप्त होते जा रहे हैं। वहीं, आधुनिक स्वास्थ्य सेवाओं को युवा महत्व देते हैं, तो बुजुर्ग पीढ़ी अभी भी झाड़फूंक से इलाज पर विश्वास कर रही है। इससे दोनों पीढ़ियों में मतभेद हो रहे हैं।
बरकतउल्ला विवि (बीयू) के रिसर्चर डॉ. विशाल नायक ने गाइड डॉ. शशांक शेखर ठाकुर के मार्गदर्शन में अपने शोध के माध्यम से डिंडोरी जिले के बैगा समुदायों की बदलती सामाजिक संरचना, जीवनशैली और सांस्कृतिक पहचान को समझने का प्रयास किया है। शिक्षा के कारण वृद्ध-युवाओं के ज्ञान व संस्कृति में बड़ा अंतर दिखाई दे रहा है। यह रिसर्च जुलाई 2017 से अगस्त 2021 तक करीब चार वर्ष में डिंडोरी के 3 ब्लॉक बजाग, करंजीया, और समनापुर में किया गया। यहां की 10 ग्राम पंचायतों के कुल 300 बैगा परिवार इसमें शामिल हुए।
गोदना : बैगा समुदाय में गोदाना कराना अनिवार्य था अब यह परंपरा कम होती जा रही है। कर्मा नृत्य: युवाओं की बेरुखी से यह संस्कृति विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई है।
- जीवनशैली में हो रहे बदलाव के कारण मिट्टी व लकड़ी से बने आवास अब आधुनिक स्वरूप ले रहे हैं।
- पारंपरिक आजीविकाएं, झूम खेती, वनोपज संग्रह, बांस शिल्प, शिकार अब कृषि, दैनिक मजदूरी में बदलीं।
- पारंपरिक ज्ञान प्रणालियां, जातीय आस्था, सामाजिक अनुष्ठान, विवाह पद्धति और सामाजिक नियंत्रण तंत्र कमजोर ।
क्या कहते हैं बुजुर्ग और युवा….
बैगा समाज की संस्कृति विलुप्त हो रही है। युवा परंपराओं को नहीं मानते। गोदना से युवा और महिलाएं दूर हो रही हैं। बैगा नृत्य कर्मा, ददरिया की ख्याति भी अब कम होती जा रही है। -इतवारी राम मच्छिया अमनिया, डिंडौरी
समय के साथ बदलाव जरूरी है। हमें पढ़ लिखकर आगे बढ़ने का मौका मिल रहा है, तो उसे स्वीकारने में क्या गलत है। हमने संस्कृति और परंपरा को छोड़ा नहीं है, लेकिन उतना समय नहीं दे पाते हैं। -सखरू बैगा, बंदना गांव
स्थानीय बोली, लोक परंपराएं और ज्ञान प्रणाली को योजनाओं में एकीकृत करना होगा। विकास तब तक पूर्ण नहीं है, जब तक वह समुदाय की संस्कृति संरक्षित नहीं हो। -डॉ. शशांक शेखर ठाकुर, गाइड एवं प्राध्यापक, बीयू