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The Jungle Story, बांस की वजह से MP में बना हाथियों का नया बसेरा, ओडिशा से आकर बांधवगढ़ में डाला डेरा, एक्सपर्ट्स और साइंटिस्ट करेंगे रिसर्च, 50 लाख के प्रोजेक्ट को मिली हरी झंडी

ओडिशा के हाथियों के एक दल ने एमपी में ही अपना स्थाई ठिकाना बना लिया है। यह कहानी चार साल पहले शुरू हुई, जब वहां से 700 किलोमीटर की दूरी तय कर बांधवगढ़ नेशनल पार्क पहुंचे 50 जंगली हाथियों को यहांं के बांस भा गए। अमूमन हाथी साल में एक बार मूवमेंट कर वापस लौट जाते हैं, लेकिन 50 हाथियों के इस समूह ने वापस जाने के बजाय बांधवगढ़ को ही अपना नया आशियाना बना लिया। हाथियों के इस बदले हुए व्यवहार और लाइफ स्टाइल को करीब से जानने के लिए अब 50 लाख रुपए खर्च कर रिसर्च की जा रही है। हालांकि प्रारंभिक तौर पर तो यही माना जा रहा है कि भरपूर भोजन और पर्याप्त जलस्त्रोत होने के कारण ही हाथियों का समूह यहां डेरा डालकर जम गया है।

बांस और सतकठा के कारण ताला रेंज से वापस ही नहीं गए

2018 में जंगली हाथियों का यह समूह छत्तीसगढ़ के रास्ते एमपी में दाखिल हुआ था। इसके बाद ये हाथी वापस ही नहीं गए और इसी एरिया में मूवमेंट करते रहे। वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट डॉ. एमएम वर्मा के अनुसार बांधवगढ़ में इन जंगली हाथियों के ठहराव की मुख्य वजह यहां पर पानी के साथ साथ भोजन के लिए पसंदीदा बांस की भरपूर मौजूदगी है। इसके अलावा हाथियो को पसंद आने वाले सतकठा पेड़ों की भी भरमार है। अब राज्य वन अनुसंधान के वैज्ञानिकों की टीम जंगली हाथियों द्वारा बांधवगढ़ पार्क के आसपास के क्षेत्र को रहवास बनाए जाने के कारणों और मानव-हाथी संघर्ष पर नियंत्रण को लेकर रिसर्च करने जा रही है, ताकि इनके यहां पर रहने की सही वजह सामने आ सके।

विचरण करता हाथियों का विशाल झुंड, फोटो सौजन्य -बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व,

50 लाख का है प्रोजेक्ट

राज्य वन अनुसंधान केंद्र के वन्यप्राणी प्रबंधन प्रभारी डॉ. मयंक मकरंद वर्मा ने बताया कि हाथियों के रहवास व मानव-हाथी संघर्ष को नियंत्रित करने के लिए कैंपा फंड से इस प्रोजेक्ट को मंजूरी मिली है। प्रोजेक्ट का नाम स्टडी प्रोजेक्ट ऑन वाइल्ड एलीफेंट हैबीटेट यूज एडं मिटिगेशन मेजर्स टू मिनिमाइज मेन- एलीफेंट कॉनफ्लेट है। इसकी अवधि दो वर्ष की है और इसके लिए 50 लाख रुपए का बजट स्वीकृत किया गया है। प्रोजेक्ट के तहत प्रदेश में आए जंगली हाथियों को बांधवगढ़ का रहवास पसंद आने के कारणों पर रिसर्च होगी। इसके साथ ही यदि ये एलिफेंट वापस लौटते हैं तो ये किन क्षेत्रों में रुकेंगे और इससे क्या नुकसान मानव आबादी को हो सकता है, इसके बारे में भी जानकारी जुटाई जाएगी। इस रिसर्च में हाथियों द्वारा उपयोग किए गए जल स्रोत और पसंदीदा भोजन के अलावा हैबिटेट मॉडल के आधार पर भी स्टडी की जाएगी।

फोटो सौजन्य -बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व,

कॉरीडोर सुरक्षित रखने पर करना होगा काम

बांधवगढ़ नेशनल पार्क के डिप्टी डायरेक्टर ललित भारती का कहना है कि जंगली हाथियों की आवाजाही के लिए कॉरीडोर सुरक्षित रखने की दिशा में काम करना होगा। इसके लिए जल्द ही दूसरे वनमंडलों के अफसरों के साथ बैठक बी की जाएगी। वहीं राज्य वन अनुसंधान केंद्र जबलपुर के डायरेक्टर अमिताभ अग्निहोत्री का दावा है कि प्रोजेक्ट के तहत वैज्ञानिक, आंकडे जुटाने के बाद एक रिपोर्ट तैयार करेंगे। जिसका मुख्य मकसद मानव और हाथियों के बीच होने वाले संघर्ष को नियंत्रित करना है।

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