ताजा खबरराष्ट्रीय

सितंबर 2026 में शुरू होगा देश का पहला परमाणु ऊर्जा संयंत्र

तमिलनाडु में बन रहा है प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर

चेन्नई। तमिलनाडु के कलपक्कम में भारत का पहला प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (पीएफबीआर) के अगले साल शुरू होने की उम्मीद है। यह रिएक्टर देश के तीन-चरणों वाले न्यूक्लियर प्रोजेक्ट का दूसरा चरण शुरू करेगा, जिसका मकसद न्यूक्लियर वेस्ट को रिसाइकल कर बिजली बनाना है। इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र ने इस रिएक्टर को डिजाइन किया था। भारत सरकार ने 2003 में परमाणु रिएक्टर-प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (पीएफबीआर) के निर्माण और संचालन के लिए भारतीय नाभिकीय विद्युत निगम लिमिटेड (इऌअश्कठक) को मंजूरी दी थी। प्लूटोनियम आधारित फ्यूल का इस्तेमाल: यह भारत का पहला ऐसा रिएक्टर है, जो प्लूटोनियम-आधारित फ्यूल (मिक्स्ड ऑक्साइड) का इस्तेमाल करेगा और ठंडा रखने के लिए लिक्विड सोडियम का उपयोग करेगा। इसमें अभी इस्तेमाल हो रहे प्रेसराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर्स (पीएचडब्ल्यूआर) से निकले फ्यूल को भी दोबारा इस्तेमाल किया जाएगा। 2025-26 तक बिजली बनाना शुरू कर देगा: न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल) जहां देश के बाकी न्यूक्लियर प्लांट्स चला रहा है, वहीं पीएफबीआर को इऌअश्कठक तैयार कर रहा है। इस रिएक्टर की क्षमता 500 मेगावॉट है और यह अपने अंतिम चरण में है। उम्मीद है कि यह 2025-26 तक बिजली बनाना शुरू कर देगा। मार्च, 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस रिएक्टर वॉल्ट और रिएक्टर के नियंत्रण कक्ष का दौरा किया। जुलाई 2024 में परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड ने फ्यूल लोडिंग और शुरुआती परीक्षणों की अनुमति दी थी। पीएफबीआर भारत के न्यूक्लियर प्रोजेक्ट में ये बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, क्योंकि इससे निकला ईंधन तीसरे चरण के थोरियम-आधारित रिएक्टर्स में काम आएगा।

पीएफबीआर से बिजली बनाने के तीन चरण

पहला चरण

इसमें प्रेसराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर्स लगाए जा रहे हैं। इनमें फ्यूल के रूप में नेचुरल यूरेनियम

दूसरा चरण

इसमें फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (एफबीआर) बनाए जाते हैं। ये रिएक्टर पहले चरण में वेस्ट हो चुके फ्यूल को दोबारा इस्तेमाल करते हैं और प्लूटोनियम बनाते हैं। इसका मकसद ज्यादा मात्रा में फ्यूल तैयार करना है, ताकि आगे इसका इस्तेमाल हो सके।और ठंडा व धीमा करने के लिए भारी जल का प्रयोग होता है। इस चरण में बिजली बनाना शुरू किया जाता है।

तीसरा चरण 

इसमें थोरियम का इस्तेमाल होगा, जो हमारे देश में अधिक मिलता है। थोरियम को सीधे उपयोग नहीं किया जा सकता, इसलिए इसे पहले यूरेनियम-233 में बदला जाता है। यह चरण भारत को न्यूक्लियर ऊर्जा में आत्मनिर्भर बनाने में बहुत जरूरी है।

संबंधित खबरें...

Back to top button