वॉशिंगटन। ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस (बीसीआई) तकनीक के डेवलपमेंट में अग्रणी न्यूयॉर्क की सिंक्रॉन कंपनी ने बुधवार को यह घोषणा की कि उसे अपनी स्टेनट्रोड मोटर न्यूरोप्रोस्थेसिस डिवाइस के क्लिनिकल ट्रायल के लिए अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्टेशन (एफडीए) की मंजूरी मिल गई है। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि यह डिवाइस पैरालिसिस के उपचार के लिए उपयोग में लाई जा सकेगी। विदित है कि इस टेक्नोलॉजी में पैरालिसिस का उपचार कर मरीज के चलने-फिरने की क्षमता बहाल करने की भी संभावना है।
न्यूयॉर्क की सिंक्रॉन कंपनी को ‘स्टेनट्रोड’ के क्लिनिकल ट्रायल की मंजूरी
न्यूयॉर्क में 6 गंभीर मरीजों पर होगा परीक्षण
एफडीए ने सिंक्रोन कंपनी की इन्वेस्टीगेशनल डिवाइस एक्सेम्पशन (आईडीइ) एप्लीकेशन को ट्रायल की मंजूरी दी है। अब अगले साल न्यूयॉर्क के माउंट सिनाई हॉस्पिटल में इस डिवाइस की फीजेबिलिटि स्टडी शुरू की जाएगी। इसके तहत पैरालिसिस के 6 गंभीर मरीजों पर माचिस की तिली से भी छोटे आकार की डिवाइस की सुरक्षा एवं क्षमता का आकलन किया जाएगा।
मस्तिष्क में उत्पन्न विचारों को टैक्स्ट में बदल देगी यह डिवाइस
यह डिवाइस उन मरीजों के लिए उपयोगी है जो मस्तिष्क में लगी चोट, आघात, एएलएस या ऐसी अन्य बीमारियों से पीड़ित हों जिससे मस्तिष्क एवं शरीर के मोटर कंट्रोल सिस्टम के बीच का कनेक्शन टूट जाता है जिसके कारण पीड़ित व्यक्ति संवाद नहीं कर पाता। स्टेनट्रोड नाम की इस डिवाइस को मस्तिष्क के भीतर फिट कर देने से यह पीड़ित के दिमाग में चल रहे विचारों को पढ़ कर उसे टेक्सट एवं इमेल के रूप में परिवर्तित कर देती है। इसे लगवाने के बाद यूजर आनलाइन शॉपिंग भी कर सकता है तथा स्मार्ट होम के जरिए अपने हर काम कर सकता है।
कैसे काम करता है स्टेनट्रोड
यह डिवाइस ब्रेन में रखी जाती है। इससे निकलने वाले सिग्नल बिना वायर का उपयोग किए सीने में प्रत्यारोपित एक यूनिट में जाते हैं तथा पास में रखे एक कंप्यूटर में ट्रांसमिट हो जाते हैं जहां से मस्तिष्क में चल रहे विचार टेक्स्ट संदेश के रूप में बाहर आते हैं। इसे लगाने शरीर में ज्यादा चीर-फाड़ करने की जरूरत नहीं पड़ती। इसे खून पहुंचाने वाली नसों में महज दो घंटे में मस्तिष्क तक पहुंचाया जा सकता है।