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Ratan Tata : फोर्ड को शिकस्त देने वाले रतन टाटा, जब फेल हुआ सबसे सस्ती कार ‘नैनो’ को मिडिल क्साल तक पहुंचाने का सपना

मुंबई। देश के उद्योग जगत में अपनी सरलता और विजन के लिए प्रसिद्ध रतन टाटा का 9 अक्टूबर की रात मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में निधन हो गया। 86 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनका जाना देश के उद्योग जगत और समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति है। रतन टाटा को उनकी नीतियों, व्यावसायिक दृष्टिकोण और समाज के प्रति उनके योगदान के लिए हमेशा याद किया जाएगा। सस्ती कार को लेकर रतन टाटा का टाटा नैनो विजन सबसे जाना माना है। एक समय फोर्ड से मिले अपमान के बाद उसे मात देने वाले रतन टाटा, आखिर अपने सबसे सस्ती कार के विजन में क्यों फेल हो गए।

एक घटना ने बदल दी दिशा

एक बार मुंबई की सड़कों पर तेज बारिश के दौरान उन्होंने एक परिवार को स्कूटर पर सफर करते देखा। चार सदस्यों का यह परिवार बड़ी कठिनाई से सफर कर रहा था। माता-पिता के बीच छोटे बच्चे किसी तरह एडजस्ट होकर बैठे थे। इस घटना ने रतन टाटा को गहराई से प्रभावित किया। उन्होंने सोचा कि यदि इस परिवार के पास एक छोटी और किफायती कार होती तो उनका सफर आसान हो जाता। इसी विचार से उन्हें दुनिया की सबसे सस्ती कार बनाने की प्रेरणा मिली, जिसे हम टाटा नैनो के नाम से जानते हैं।

टाटा नैनो का हुआ सफल लॉन्च

रतन टाटा ने 2008 में इसे दिल्ली ऑटो एक्सपो में लॉन्च किया। उनका लक्ष्य था कि भारतीय परिवारों को कम कीमत में एक बेहतर ट्रांसपोर्ट माध्यम प्रदान किया जाए। टाटा नैनो का बेसिक मॉडल 1 लाख रुपए में उपलब्ध कराया गया। इस क्रांतिकारी पहल ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा और टाटा नैनो दुनिया की सबसे सस्ती कार के रूप में उभरी। नैनो के लॉन्च पर रतन टाटा ने कहा था, “यह कार हर उस परिवार के लिए है, जो बाइक पर सफर करता है। इसे इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि यह हर किसी की पहुंच में हो।”

टाटा नैनो में रहीं कई चुनौतियां

शुरुआती दौर में टाटा नैनो को काफी सराहना मिली लेकिन समय के साथ इसकी मांग घटने लगी। साल 2019 तक टाटा नैनो की बिक्री लगभग बंद हो गई। इस साल की पहली तीन तिमाहियों में सिर्फ एक ही कार की बिक्री हुई, जिसके बाद टाटा मोटर्स ने इसके उत्पादन को पूरी तरह से बंद करने का फैसला लिया।

टाटा नैनो के असफलता के पीछे कुछ खास वजहें बताई जाती हैं। भारतीय समाज में कार लेना एक स्टेटस सिंबल माना जाता है। ऐसे में टाटा नैनो को पहले ही सस्ती और किफायती कार के रूप में प्रचारित किया गया था। इसकी छवि भारतीय लोअर मिडिल क्साल में कुछ अच्छी नहीं रही, जिससे इसकी लोकप्रियता पर काफी असर पड़ा। लोग इसे लखटकिया कार कह कर भी बुलाते थे, जिसे एक मजाक के रूप में समझा जाता था। हालांकि, कार की तकनीकि समस्याएं भी इसके विफलता का कारण बताई गईं। इंजन में शॉर्ट सर्किट होने और आग लगने की घटनाओं ने नैनो की साख को और गिरा दिया।

एक अपमान से मिली प्रेरणा

टाटा मोटर्स की यात्रा कभी इतनी आसान नहीं रही। वर्ष 1998 में टाटा इंडिका के असफल होने के बाद रतन टाटा ने टाटा मोटर्स को बेचने का विचार किया। इसके लिए वे फोर्ड मोटर्स के चेयरमैन बिल फोर्ड से मिलने अमेरिका गए। इस मुलाकात के दौरान बिल फोर्ड ने रतन टाटा को कहा कि उन्हें इस इंडस्ट्री के बारे में कुछ पता ही नहीं था और अगर फोर्ड, टाटा मोटर्स को खरीदती है तो यह उन पर एक तरह का अहसान होगा।

बस क्या था…! इस अपमानजनक बयान के बाद रतन टाटा ने टाटा मोटर्स को न बेचने का फैसला किया। वापस भारत लौटकर इसे मजबूत बनाने का फैसला किया। उन्होंने अपनी कंपनी को मजबूती और ऑटोमोबाइल सेक्टर में पहचान स्थापित करने के लिए मेहनत की और सफारी, सुमो जैसी गाड़ियों पर ध्यान केंद्रित किया। धीरे-धीरे कंपनी ने अपनी पहचान फिर से बनाई और सफल रही।

आखिरकार ले लिया फोर्ड से बदला

साल 2008 में अमेरिका में आर्थिक मंदी आने के बाद वहां के बाजार का बहुत खस्ता हाल था। फोर्ड मोटर्स भी इससे अछूती नहीं रही। इसी दौरान रतन टाटा ने फोर्ड से उनकी प्रीमियम कार ब्रांड जगुआर लैंड रोवर (JLR) को 2.3 बिलियन डॉलर में खरीद लिया। यह वही फोर्ड मोटर्स थी, जिसने कभी टाटा मोटर्स को खरीदकर एहसान करने की बात कही थी। जगुआर लैंड रोवर आज एक सफल ब्रांड है और हर साल लाखों गाड़ियां बेचता है।

भले ही आज रतन टाटा हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके कार्यों और उनके द्वारा दिए गए योगदान को देश और दुनिया हमेशा याद रखेगी।

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