
पन्ना। किमती रत्न हीरा की खदानों के लिए देश और दुनिया में प्रसिद्ध मध्य प्रदेश के पन्ना जिले की धरती से निकलने वाले हीरों को जीआई टैग की स्वीकृति मिल गई है। हीरा अधिकारी पन्ना रवि पटेल ने मीडिया को बताया कि 07 जून को जीआई टैग के लिए आवेदन किया गया था। इसकी स्वीकृति मिलने से पन्ना के हीरों की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वैल्यू बढ़ेगी।
जीआई टैग से प्रोडक्ट की कीमत व महत्व बढ़ जाता
रवि पटेल ने कहा कि जीआई (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन) यानी भौगोलिक संकेत एक प्रतीक है, जो मुख्य रूप से किसी उत्पाद को उसके मूल क्षेत्र से जोड़ने के लिए दिया जाता है। जिस वस्तु को यह टैग मिलता है वह उसकी विशेषता बताता है। पन्ना के हीरों को जीआई टैग मिले इसके लिए ह्यूमन वेलफेयर सोसाइटी लखनऊ द्वारा चेन्नई स्थित संस्था में आवेदन किया गया था। भारत के वाणिज्य मंत्रालय के तहत काम करने वाली यह संस्था पूरी जांच पड़ताल और छानबीन के बाद जीआई टैग देती है। जीआई टैग मिलने से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उस प्रोडक्ट की कीमत व महत्व बढ़ जाता है।
पन्ना के हीरों की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ेगी चमक
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश के पन्ना जिले की पहचान सदियों से यहां की धरती से निकलने वाले बेशकीमती हीरे के कारण है। यही वजह है की पन्ना को डायमंड सिटी के नाम से भी जाना जाता है। जीआई टैग मिलने से पन्ना के हीरों की चमक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ेगी, जिसका लाभ निश्चित ही पन्ना के हीरा व्यवसाय से जुड़े लोगों को मिलेगा।
अनेकों उत्पादों को मिल चुका जीआई टैग
गौरतलब हैं कि भारत में पहला जीआई टैग दार्जिलिंग की चाय को साल 2004 में मिला था। उसके बाद देश के अलग-अलग राज्यों और क्षेत्र विशेष की पहचान बन चुके अनेकों उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है। इनमें कश्मीर का केसर और पश्मीना शॉल, नागपुर के संतरे, बंगाली रसगुल्ले, बनारसी साड़ी, तिरुपति के लड्डू, रतलाम की सेव, बीकानेरी भुजिया, झाबुआ का कड़कनाथ, चंदेरी साड़ी, महोबा का पान आदि शामिल है।