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अब लॉ ग्रेजुएट डायरेक्ट नहीं बन सकेंगे जज, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, CJI गवई बोले- तीन साल की प्रैक्टिस जरूरी

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सिविल जज की नियुक्ति प्रक्रिया में बड़ा बदलाव किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब लॉ ग्रेजुएट्स को परीक्षा में शामिल होने से पहले कम से कम तीन साल की लीगल प्रैक्टिस करना अनिवार्य होगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बिना अनुभव के सीधे न्यायिक सेवा में आने से न्याय व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और व्यावहारिक ज्ञान के बिना जज के रूप में काम करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

यह फैसला मुख्य न्यायाधीश भूषण रामाकृष्ण गवई, जस्टिस एजी मसीह और जस्टिस विनोद चंद्रन की पीठ ने सुनाया। अदालत का यह निर्णय देशभर की न्यायिक सेवाओं में एकरूपता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

नए लॉ ग्रेजुएट्स सीधे नहीं दे सकेंगे परीक्षा

सीजेआई गवई ने अपने बयान में स्पष्ट किया कि अब कोई भी लॉ ग्रेजुएट सीधे जूनियर डिवीजन सिविल जज की परीक्षा में शामिल नहीं हो सकेगा। उसे पहले कम से कम तीन साल तक वकील के तौर पर प्रैक्टिस करनी होगी। उन्होंने यह भी कहा कि न्यायिक सेवा में अनुभव की कमी से न्याय वितरण प्रणाली प्रभावित हो रही थी, और यह बदलाव समय की मांग है।

सीनियर डिवीजन जज के लिए 25% विभागीय आरक्षण

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि सीनियर डिवीजन सिविल जज की नियुक्ति प्रक्रिया में जूनियर जजों को 25% विभागीय आरक्षण मिलेगा। इससे न्यायिक सेवा में पदोन्नति और योग्यता आधारित वृद्धि को बढ़ावा मिलेगा।

कोर्ट ने बताई ये शर्तें

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह नियम उन परीक्षाओं पर लागू नहीं होगा, जिनकी प्रक्रिया राज्य हाईकोर्ट्स पहले ही शुरू कर चुके हैं। इसके अलावा, कोर्ट ने कुछ विशेष स्थितियों में छूट भी दी है:

  • यदि कोई उम्मीदवार दस साल से प्रैक्टिस कर रहे वकील के अधीन तीन साल तक काम करता है, और वह वकील संबंधित ज्यूडिशियल अधिकारी द्वारा मान्यता प्राप्त है, तो उसे पात्र माना जाएगा।
  • अगर कोई उम्मीदवार सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे वरिष्ठ वकील के अधीन काम करता है, तो उस वकील को सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट से मान्यता प्राप्त होना चाहिए।
  • तीन साल लॉ क्लर्क के रूप में कार्य करने वाले उम्मीदवार को भी पात्रता प्रदान की जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि ऐसे लॉ ग्रेजुएट को जज बनाना मुश्किल पैदा कर सकता है, जिसने कोर्ट में एक दिन भी प्रैक्टिस न की हो। कोर्ट में व्यावहारिक अनुभव जरूरी है- यह केवल किताबें पढ़ने या ट्रेनिंग लेने से नहीं आता। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि पिछले दो दशकों से चली आ रही व्यवस्था से न्यायिक प्रक्रिया को वह गुणवत्ता नहीं मिल पाई जिसकी अपेक्षा थी।

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