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मुर्गी की वजह से गिराई बेसमेंट की दीवार तो नीचे से निकली अंडरग्राउंड सिटी, जहां रहते थे 20 हजार से ज्यादा लोग, जानिए यूनेस्को की इस बेशकीमती धरोहर की इन साइड स्टोरी

ग्लोबल डेस्क, पीपुल्स अपडेट। यह कहानी आपको भले ही कल्पनाओं से परे ले जाए लेकिन है पूरी तरह सच।  तुर्किये (पूर्व में तुर्की) के कप्पाडोसिया में एक व्यक्ति ने 1963 में एक ऐसी विरासत खोज निकाली जिसे देख दुनिया हैरत में पड़ गई। यहां रहने वाला एक व्यक्ति कुछ दिनो से लगातार परेशान था क्योंकि उसकी मुर्गियां घर के बैकयार्ड से लगातार गायब हो रही थीं। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार जब इस व्यक्ति ने वहां जाकर देखा तो एक तहखाना दिखा, जो मरम्मत के दौरान खुला रह गया था। यहां उसने जैसे ही एक दीवार हटाई उसके बाद उसे सुरंग दिखाई दी। इस तरह अनजाने में ही सही, लेकिन दुनिया से अनजान एक विशाल भूमिगत शहर को खोज निकाला गया।

इस प्राचीन लेकिन खंडहर हो चुके भूमिगत शहर को नाम दिया गया डेरिंकुयू। जब गहराई से तफ्तीश की गई तो पुरातत्वविदों को पता चला कि पृथ्वी की सतह से 280 फीट नीचे यहां सुरंगों और गुफाओं के बीच मकानों का जाल बिछा है, जिसमें कभी 20,000 लोग रहते थे।

अगर भौगौलिक नजरिए से देखा जाए तो एशिया और यूरोप की सीमा में बसे तुर्किए का ये भूमिगत शहर पृथ्वी की सतह से 280 फीट नीचे बसा हुआ है। इस बस्ती की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसके भीतर तापमान हमेशा नियंत्रित रहता था।

1920 से पहले इस प्राचीन शहर का इस्तेमाल सदियों तक किया जाता रहा। यहां खोज के दौरान उजागर हुआ है कि सुरंग के भीतर ये सिटी मल्टी स्टोरी बिल्डिंग की तर्ज पर बनाई गई थी और जब भी लोग चाहते एक मंजिल से दूसरी मंजिल तक जाने के रास्ते बंद कर सकते थे। हांलिक उस समय दरवाजे नहीं थे, लिहाजा गोल पत्थरों का इस्तेमाल आवा-जाही रोकने के लिए किया जाता था।

साल 1985 में इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर में शामिल किया। जिसके बाद डेरिंकुयू आगंतुकों के लिए खोला गया। यहां आने वाले टूरिस्ट इसके 18 लेवल में से केवल 8 को ही एक्सप्लोर कर सकते हैं। हालांकि विश्व धरोहर में शामिल होने के बाद अब डेरिंकुयू  दुनिया भर के ऐसे पर्यटकों की पसंदीदा जगह है जो इतिहास से जुड़ी धरोहरों को देखना खास तौर पर पसंद करते हैं।

तुर्किये के डिपार्टमेंट ऑफ कल्चर के अनुसार इम सुरंगों को लगभग 700 से 800 ईसा पूर्व बनाया गया था और इनका दायरा लगभग 4 वर्ग किलोमीटर का है। भूगर्भ विज्ञान के अनुसार इस एरिया में प्राचीन ज्वालामुखी की मुलायम चट्टानें हैं, जिन्हे तराशना आसान होता है। यही वजह रही कि लोगों ने यहां सुरंगें खोदकर मकान बना लिए और यहां रहना शुरू कर दिया।

यहां शोध के बाद सामने आया कि सुरंग के भीतर एक मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बनाकर लोग रहते थे। घरों तक आने-जाने के लिए बकायदा पत्थरों को तराशकर सीढियां बनाई गई थीं। हर घर के लिए एक मेन गेट था, जिसमें प्रवेश द्वार पर डेढ़ मीटर लंबा और 200 से 500 किलो वजनी पत्थर होता था। हालांकि अब भी ये एक रहस्य ही है कि इन पत्थरों को लगाने और हटाने के लिए यहां के रहवासी किस ट्रिक का इस्तेमाल करते थे ?

जानकारों के मुताबिक इस सुरंग को बनाने के पीछे एक बड़ी कहानी तुर्क शासकों के बढ़ते हमले भी थे। जिस दौर में ये निर्माण हुआ उस समय तुर्क साम्राज्य लगातार हमले कर अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहा था। लिहाजा कहानी ये भी मानी जाती है कि इस सुरंग के अंदर मकान आक्रमणकारियों से छिपने के लिए बनाए गए थे।

एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस स्ट्रक्टर पर भूकंप भी बेअसर है। लोगों की सुख-सुविधाओं को देखते हुए जमीन के भीतर ही पूजा-स्थल से लेकर वॉशरूम, बावड़ी, कुएं और कब्रिस्तान तक बनाए गए थे। साथ ही यहां वाइन मेकिंग, ऑइल प्रोसेसिंग और फूड स्टोरेज की सुविधा तक मौजूद थी। इस सुरंग की गहराई लगभग 200 फीट है।

(सभी फोटो का स्रोत – सोशल मीडिया)

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