पुष्पेन्द्र सिंह-भोपाल। अशोकनगर के सोनू त्यागी का बेटा दिव्यांश जब तीन माह का था, तब वह कुपोषण का शिकार हो गया। उसका वजन 3 किलो से भी कम था, आंगनबाड़ी केंद्र ले जाया गया और लगातार निगरानी का असर रहा कि ढाई साल के होने पर उसका वजन 9 किलो से अधिक हो गया। जिले की महिला एवं बाल विकास अधिकारी चंद्रसेना भालचंद्र भिड़े कहती हैं कि कभी मुंगावली में ज्यादा कुपोषण था। अब करीब 600 कुपोषित बच्चे हैं। संख्या स्थिर है।
दरअसल मप्र वर्ष 2016 के पहले तक कुपोषण में नम्बर-वन था लेकिन, 2005-06 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-3 और 2020-21 के सर्वे रिपोर्ट के पता चलता है कि मध्य प्रदेश 15 साल में कुपोषण में गिरावट दर्ज करने वाला राष्ट्रीय रैंक में दूसरा राज्य बन गया है। वहीं एक साल में बच्चों में दुबलापन 10 से घटकर सात प्रतिशत पर आ गया है।
श्योपुर ने मिटाया कलंक
मध्यप्रदेश के श्योपुर को कभी भारत का इथोपिया कहा जाता था लेकिन यह कलंक इस जिले से मिट गया है। जनवरी 24 की स्थिति में यहां अति कुपोषित सिर्फ 202 बच्चे चिन्हित हुए थे। इसके अलावा अशोकनगर, कटनी, सतना, दतिया, आलीराजपुर, बुरहानपुर में अतिकुपोषित बच्चों की संख्या लगातार घट रही है।
धार जिला इसलिए आगे
कुपोषण के मामले में अब धार जिला 2411 अतिकुपोषित के साथ सबसे आगे है। जिला कार्यक्रम अधिकारी ओपी पांडे कहते हैं कि जिला स्तर पर यहां तीन हजार से अधिक आंगनबाड़ी केंद्र हैं, इसलिए संख्या ज्यादा होगी। यहां बच्चों की मॉनिटरिंग हो रही है। वहीं कई जिलों में इसमें लापरवाही बरती जा रही है।
सुधार के लिए ये प्रयास
- नियमित गृहभेंट कर परिवार को पोषण परामर्श देना।
- अटल बिहारी वाजपेयी बाल आरोग्य और पोषण मिशन का संचालन।
- समुदाय की सहभागिता से स्वास्थ्य एवं पोषण पर जागरुकता।
- अति गंभीर कुपोषित बच्चों के पोषण प्रबंधन के लिए एम्स का सहयोग।
- मुख्यमंत्री बाल आरोग्य संवर्धन कार्यक्रम का क्रियान्वयन।
- आंगनबाड़ी केंद्रों का नियमित संचालन और इसकी ऑनलाइन निगरानी।
- जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन।
1 बच्चे पर रोज 12 रु. खर्च
- प्रदेश सरकार अभी अति कम वजन बच्चों के प्रतिदिन के पोषण आहार पर मात्र 12 रुपए खर्च कर रही है। वहीं, अन्य कुपोषित बच्चों को आठ रुपए और गर्भवती एवं धात्री महिलाओं को साढ़े नौ रुपए रोज का आहार दिया जाता है। इस राशि में आधा केंद्र व आधा राज्य सरकार देती है।
- टीवी और डायरिया से भी बच्चे होते हैं कुपोषित: बच्चे सिर्फ पोषण आहार की कमी से ही कुपोषित नहीं होते। ग्रामीण क्षेत्रों में सफाई न रखना भी कारण है। जिससे डायरिया होता है और बच्चा कुपोषित हो जाता है।
जन सहयोग से विजय पाएंगे
प्रदेश में पिछले 20 साल से कुपोषण में कमी हो रही है। हमने जन सहयोग को प्राथमिकता दी है, साथ ही समय पर पोषण आहार उपलब्ध कराना, उपचार पर नजर है। पोषण ट्रैकर ऐप से मॉनिटरिंग की जा रही है। – सूफिया फारुकी वली, आयुक्त, महिला एवं बाल विकास विभाग