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सुप्रीम कोर्ट का जोशीमठ संकट पर सुनवाई से इनकार, कहा- याचिकाकर्ता अपनी बात उत्तराखंड HC में रखें

जोशीमठ संकट के मामले में तुरंत दखल देने से सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इनकार कर दिया। जोशीमठ संकट को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने के लिए हस्तक्षेप की मांग वाली याचिका कोर्ट ने खारिज कर दिया। इसके साथ ही CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जे बी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि, याचिकाकर्ता चाहें तो उत्तराखंड हाईकोर्ट जा सकते हैं।

याचिकाकर्ता ने की यह मांग

कोर्ट में स्वामी अविमुक्तेश्वारानंद सरस्वती ने याचिका दायर की थी। याचिका में मांग की गई थी कि, केंद्र सरकार से कहा जाए कि वह संकट को राष्ट्रीय आपदा घोषित करे और मरम्मत के काम में मदद करें। इसके साथ ही जमीन धंसने से प्रभावित हो रहे जोशीमठ के लोगों के पुनर्वास और उनकी संपत्ति का बीमा कराए जाने की मांग की थी। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि उत्तराखंड हाई कोर्ट में अपनी बात रखें।

678 इमारतें असुरक्षित

उत्तराखंड के DGP डीजीपी अशोक कुमार ने कहा- अभी 678 इमारतें असुरक्षित हैं। ज्यादातर इमारतों को खाली करा लिया गया है। ये प्रक्रिया अभी जारी है। पूरे इलाके की साइंटिफिक स्टडी हो चुकी है और कुछ इलाकों को सील भी किया जाएगा।

603 घरों में आई दरारें

जोशीमठ में 603 घरों में दरारें आई हैं। जिसके चलते अधिकतर लोग डर के कारण घर के बाहर ही रहने को मजबूर हैं। किराएदार भी लैंड स्लाइड के डर से घर छोड़कर चले गए हैं। अभी तक 70 परिवारों को वहां से हटा दिया गया है। बाकि लोगों को हटाने का काम भी चल रहा है। प्रशासन ने लोगों से अपील की है कि वह रिलीफ कैंप में चले जाएं।

राज्य सरकार ने जोशीमठ को तीन जोन में बांटा

राज्य सरकार ने जोशीमठ को तीन जोन में बांटने का फैसला किया है। जिसमें यह तीन जोन होंगे- डेंजर, बफर और सेफ जोन। डेंजर जोन में ऐसे मकान होंगे जिनकी स्थिति काफी जर्जर है और रहने लायक नहीं हैं। ऐसे मकानों को मैन्युअली गिराया जाएगा, जबकि सेफ जोन में वो घर होंगे जिनमें हल्की दरारें हैं और जिसके टूटने की आशंका बहुत कम है। बफर जोन में वो मकान होंगे, जिनमें हल्की दरारें हैं। बताया जा रहा है कि दरारों के बढ़ने की संभावना है। एक्सपर्ट्स की एक टीम दरार वाले मकानों को गिराने की सिफारिश कर चुकी है।

जोशीमठ के मकानों पर लगे लाल निशान

जोशीमठ के सिंधी गांधीनगर और मनोहर बाग एरिया डेंजर जोन में हैं। यहां के मकानों पर रेड क्रॉस (लाल निशान) लगाए गए हैं। प्रशासन ने इन मकानों को रहने लायक नहीं बताया है। चमोली DM हिमांशु खुराना ने बताया कि जोशीमठ और आसपास के इलाकों में कंस्ट्रक्शन बैन कर दिया गया है।

साल दर साल धंस रहा इलाका

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग की दो साल की स्टडी के मुताबिक जोशीमठ और इसके आसपास के क्षेत्र में हर साल 2.5 इंच की दर से जमीन धंसती जा रही है। यह अध्ययन देहरादून स्थित संस्थान द्वारा सैटेलाइट डेटा का उपयोग करते हुए किया गया है। जुलाई 2020 से मार्च 2022 तक जमा की गई सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि पूरा क्षेत्र धीरे-धीरे धंसता चला जा रहा है। डेटा से पता चलता है कि धंसने वाला क्षेत्र पूरी घाटी में फैला हुआ है और जोशीमठ तक ही सीमित नहीं हैं।

NTPC ने कहा- लैंडस्लाइड से कोई लेना-देना नहीं

राज्य की पावर प्रोड्यूसर कंपनी NTPC ने कहा- तपोवन विष्णुगढ़ प्रोजेक्ट का जोशीमठ में हो रहे लैंडस्लाइड से कोई लेना-देना नहीं है। बता दें कि जोशीमठ लैंडस्लाइड के लिए NTPC के एक हाइड्रो प्रोजेक्ट को जिम्मेदार माना जा रहा है। वहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि NTPC के हाइड्रो प्रोजेक्ट के लिए सुरंग खोदी गई, जिस वजह से शहर धंसता जा रहा है। हालांकि NTPC ने इन सब बातों को खारिज कर दिया है।

हर परिवार को 1.50 लाख की अंतरिम मदद

उत्तराखंड के सीएम के सचिव आईएएस अफसर आर.मीनाक्षी सुन्दरम ने बताया कि जोशीमठ में जमीन धंसने से प्रभावित प्रत्येक परिवार को तत्कालिक तौर पर 1.50 लाख रुपए की अंतरिम मदद दी जा रही है। उन्होंने कहा कि जोशीमठ में जमीन धंसने के कारण लटक गए दो होटलों को ढहाने का आदेश दिया गया है, क्योंकि ये होटल आसपास के भवनों के लिए भी खतरा बने हुए हैं। इनके अलावा अभी कोई भी भवन नहीं तोड़ा जा रहा है।

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