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उपराष्ट्रपति धनखड़ बोले- न्यायपालिका भारत के राष्ट्रपति को निर्देश नहीं दे सकती, ‘सुपर संसद’ की तरह काम कर रहे जज

नई दिल्ली। भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश पर कड़ी आपत्ति जताई है, जिसमें राष्ट्रपति को राज्यपालों की ओर से भेजे गए विधेयकों पर डेडलाइन के भीतर फैसला लेने का निर्देश दिया गया था। उपराष्ट्रपति ने इस फैसले को संवैधानिक सीमाओं का उल्लंघन बताते हुए कहा कि न्यायपालिका कभी ‘सुपर संसद’ नहीं बन सकती।

उपराष्ट्रपति ने इस आदेश पर सवाल उठाते हुए कहा, हम ऐसी व्यवस्था की कल्पना नहीं कर सकते जहां न्यायपालिका राष्ट्रपति को आदेश दे। राष्ट्रपति का संवैधानिक स्थान सर्वोपरि है, और उनका निर्णय स्वतंत्र होना चाहिए।

राष्ट्रपति का स्थान सर्वोच्च है

धनखड़ राज्यसभा इंटर्न्स के एक ग्रुप को संबोधित करते हुए उन्होंने इस मुद्दे पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि देश की अदालतें संविधान की व्याख्या तो कर सकती हैं, लेकिन अदालतें राष्ट्रपति को निर्देश नहीं दे सकतीं। राष्ट्रपति का स्थान सर्वोच्च है, जबकि बाकी लोग संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं। ऐसे में न्यायपालिका द्वारा राष्ट्रपति को आदेश देना बेहद चिंताजनक है।

अनुच्छेद 142 बना न्यायपालिका का परमाणु मिसाइल

धनखड़ ने अनुच्छेद 142 का उल्लेख करते हुए कहा कि यह प्रावधान अब एक ऐसी ‘परमाणु मिसाइल’ बन चुका है, जिसका प्रयोग न्यायपालिका द्वारा जब चाहें, तब किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि संविधान की व्याख्या केवल अनुच्छेद 145(3) के तहत पांच या उससे अधिक जजों की पीठ द्वारा की जा सकती है। लेकिन अब अदालतें कानून भी बना रही हैं, कार्यपालिका का काम भी कर रही हैं और संसद जैसा व्यवहार भी कर रही हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर यही सिलसिला चलता रहा तो लोकतंत्र के तीनों स्तंभों के बीच की लक्ष्मण रेखा धुंधली हो जाएगी।

राष्ट्रपति को आदेश देना संविधान का अपमान

उपराष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर खास नाराजगी जताई जिसमें कहा गया है कि अगर राष्ट्रपति डेडलाइन के भीतर फैसला नहीं लेते हैं, तो विधेयक स्वतः कानून बन जाएगा। उन्होंने इसे लोकतांत्रिक व्यवस्था के मूल सिद्धांतों के खिलाफ बताया। धनखड़ ने कहा, हमने ऐसे लोकतंत्र की कभी कल्पना नहीं की थी। क्या जज अब कानून भी बनाएंगे, कार्यपालिका की तरह काम भी करेंगे और किसी के प्रति जवाबदेह भी नहीं होंगे?

जज बन गए कानून निर्माता, लेकिन जवाबदेही शून्य है

धनखड़ ने चेताया कि हमारे पास ऐसे जज हैं जो न केवल कानून बना रहे हैं, बल्कि कार्यपालिका की भूमिका भी निभा रहे हैं और सुपर संसद की तरह काम कर रहे हैं। इनकी कोई जवाबदेही नहीं है, क्योंकि कानून उनके ऊपर लागू नहीं होता।

जज के घर कैश मिलने पर भी उठाए सवाल

धनखड़ ने दिल्ली के एक जज के घर से नकदी मिलने की घटना का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि यह मामला सात दिन तक सामने नहीं आया, यह न केवल चौंकाने वाला है बल्कि न्याय प्रणाली की पारदर्शिता पर सवाल खड़े करता है।

उन्होंने पूछा कि क्या इस मामले की जांच कर रही तीन जजों की कमेटी संविधान के अंतर्गत अधिकृत है? क्या इस कमेटी को संसद की मंजूरी मिली है? उन्होंने कहा कि यह कमेटी केवल सिफारिश कर सकती है, लेकिन कार्रवाई केवल संसद ही कर सकती है।

एक महीना बीता, लेकिन कार्रवाई अब भी अधूरी

धनखड़ ने इस मामले में तत्परता और पारदर्शिता की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि जांच में देरी से प्रमाण मिटाए जा सकते हैं, इसलिए दोषी को चिन्हित करने और साक्ष्यों को सुरक्षित रखने की आवश्यकता है।

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