
एम्सटर्डम। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एक डच अखबार डे वोल्क्सक्रांत को दिए गए इंटरव्यू में पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर को धार्मिक कट्टरपंथी करार दिया। उन्होंने कहा कि मुनीर की सोच और व्यवहार में धार्मिक उग्रता साफ झलकती है।
मुनीर के बयान के 5 दिन बाद हुआ पहलगाम हमला
जयशंकर ने बताया कि असीम मुनीर ने कुछ दिन पहले एक भाषण में कश्मीर को पाकिस्तान की गले की नस बताया था और कहा था कि पाकिस्तानी लोग कभी यह नहीं भूल सकते कि वे हिंदुओं से अलग हैं। उन्होंने जिन्ना के द्विराष्ट्र सिद्धांत का हवाला देते हुए बच्चों को यह कहानी सुनाने की वकालत की थी ताकि वे समझ सकें कि विभाजन क्यों हुआ।
जयशंकर ने इस बयान को धार्मिक कट्टरता की मिसाल बताते हुए कहा कि ऐसे भाषणों से माहौल जहरीला होता है। उन्होंने यह भी बताया कि मुनीर के बयान के पांच दिन बाद ही जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में एक आतंकी हमला हुआ, जो पूरी तरह से सुनियोजित था।
टूरिज्म और धार्मिक सौहार्द को निशाना बनाने की कोशिश
विदेश मंत्री ने पहलगाम हमले को बर्बर करार देते हुए कहा कि इसका मकसद केवल निर्दोष लोगों की जान लेना नहीं था, बल्कि यह हमला कश्मीर के पर्यटन को नुकसान पहुंचाने और सांप्रदायिक तनाव भड़काने की एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था। उन्होंने पाकिस्तान को आतंकवाद का केंद्र बताते हुए कहा कि वहां सक्रिय आतंकी संगठनों को न केवल समर्थन मिलता है, बल्कि वे सरकार से भी सहयोग प्राप्त करते हैं।
भारत-पाक के बीच संघर्ष विराम आपसी बातचीत से हुआ- जयशंकर
जयशंकर ने इंटरव्यू में इस बात को सिरे से खारिज किया कि भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम में अमेरिका ने कोई निर्णायक भूमिका निभाई थी। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह निर्णय दोनों देशों के बीच आपसी बातचीत के जरिए हुआ था।
उन्होंने बताया कि भारत ने पाकिस्तान सहित सभी देशों को यह संदेश दे दिया था कि अगर पाकिस्तान को संघर्ष विराम चाहिए, तो वह सीधे भारत के सैन्य अधिकारियों से बात करे। जयशंकर ने बताया कि हमारे पास एक हॉटलाइन है, जिसके माध्यम से दोनों देशों के सैन्य अधिकारी सीधे संपर्क में रहते हैं।
10 मई को पाकिस्तान की ओर से संदेश आया कि वे गोलीबारी रोकना चाहते हैं। इसके बाद दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों ने आपसी बातचीत कर संघर्ष विराम पर सहमति बनाई।
सिर्फ दावा करने से कुछ नहीं होता
जयशंकर ने अमेरिकी भूमिका को लेकर फैली अफवाहों पर भी जवाब दिया। उन्होंने कहा कि अमेरिका ही एकमात्र देश नहीं था जो मध्यस्थता की कोशिश कर रहा था। कई अन्य देश भी पीछे थे, लेकिन संघर्ष विराम भारत और पाकिस्तान की सीधी बातचीत से ही संभव हो पाया।
बता दें, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सात बार यह दावा कर चुके हैं कि उन्होंने भारत-पाक के बीच संघर्ष को सुलझाने में अहम भूमिका निभाई थी।
जयशंकर ने यह भी बताया कि तनाव के समय अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने उनसे संपर्क किया था, वहीं अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन किया था। लेकिन इन संवादों का संघर्ष विराम पर कोई वास्तविक प्रभाव नहीं पड़ा।
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