भोपाल। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह शनिवार को संस्कारधानी जबलपुर के दौरे पर हैं। वे वहां गोंडवाना राजा शंकर शाह और उनके बेटे कुंवर रघुनाथ शाह की प्रतिमाओं पर माल्यार्पण करेंगे और बलिदान दिवस कार्यक्रम में शामिल होंगे। आज ही के दिन राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह ने आजादी की लड़ाई में अपना बलिदान दिया था। तब से हर साल ये कार्यक्रम आयोजित कर उन्हें याद किया जाता है। आदिवासी समाज में राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के प्रति बेहद सम्मान है। हम आपको बताएंगे कि राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह कौन थे और क्यों अंग्रेजों ने उन्हें तोप से बांधकर उड़ा दिया था?
बात 1857 की है। जबलपुर में तैनात अंग्रेजों की 52वीं रेजीमेंट का कमांडर क्लार्क बहुत ही क्रूर माना जाता था। वह आसपास के छोटे राजाओं और जमीदारों को परेशान करता था। मनमाना कर वसूलता था। इस पर तत्कालीन गोंडवाना राज्य के राजा शंकर शाह और उनके बेटे कुंवर रघुनाथ शाह ने इसके विरोध की रणनीति बनाई। उन्होंने तय किया कि अंग्रेज कमांडर क्लार्क के सामने नहीं झुकेंगे।
अंग्रेजों के खिलाफ इकट्ठा किया तो गुप्तचरों ने कर दी खबर
दोनों ने आसपास के राजाओं को अंग्रेजों के खिलाफ इकट्ठा करना शुरू कर दिया। दोनों बाप-बेटे अच्छे कवि थे और वह कविताओं के जरिए राज्य में लोगों को क्रांति के लिए प्रेरित करते थे। कमांडर क्लार्क को गुप्तचरों के जरिए इस बात का पता चला तो उन्होंने राज्य पर हमला बोल दिया। तब गोंडवाना राज्य में मौजूदा जबलपुर और मंडला का इलाका था।
अमित शाह के जबलपुर आने पर बदली रहेगी ट्रैफिक व्यवस्था
पहले बाप-बेटे को बंदी बनाया, फिर मार दिया
माना जाता है कि अंग्रेज कमांडर ने धोखे से 14 सितंबर को बाप-बेटे को बंदी बना लिया था और 18 सितंबर को दोनों को तोप के मुंह से बांधकर उड़ा दिया गया था, उसके बाद से हर साल 18 सितंबर को इस दिन को बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है।
ये रही शंकर शाह की जीवन यात्रा…
इतिहासविद राजकुमार गुप्ता के मुताबिक, राजा सुमेर शाह की रानी ने 1789 में शंकर शाह को जन्म दिया। उस समय राजा सुमेर सिंह मराठों के बंदी होकर सागर के किले में कैद थे। बाद में मराठों ने सुमेर शाह को छोड़ दिया। 1800 में पुरवा स्थित हवेली में 16 साल की उम्र में शंकर शाह को युवराज बनाया गया। शंकर शाह गुरिल्ला युद्ध के जरिए मराठा सैनिकों पर हमले करने लगे। 20 की उम्र में उनकी शादी युद्धकला में निपुण फूलकुंवरि से हुई। दो साल बाद कुंवर रघुनाथ शाह का जन्म हुआ।
रानी लक्ष्मीबाई ने मदद में बंदूकें और कारतूस भेजे
34 साल की उम्र में शंकर शाह ने अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध शुरू कर दिया। 1857 आते-आते देशभर में अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध शुरू हो गया। शंकरशाह ने बेटे कुंवर रघुनाथ के साथ मिलकर अंग्रेज छावनी पर हमले की योजना बनाई थी। इसके लिए शंकरशाह ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से सहायता ली थी। रानी ने तंबरों में बंदूकें और मटकी में कारतूसें भरकर दिए। योजना थी कि अंग्रेजों के तोपखाने पर कब्जा कर ठिकानों को ध्वस्त कर दिया जाएगा।