
भोपाल, प्रीति जैन। 14 साल की उम्र में मुझे विकल्प दिया गया कि या तो मैं लड़के की तरह रहूं, नहीं तो घर से निकल जाऊं। मेरी घुटन बढ़ती जा रही थी, क्योंकि ईश्वर ने पुरुष के रूप में जन्म दिया, लेकिन आत्मा स्त्री की थी। 20 रुपए लेकर घर से बाहर अंजान दुनिया में निकल गई, क्योंकि शोषण घर के भीतर भी हो रहा था। यह कहना है, भारत की पहली ट्रांसजेंडर कथक नृत्यांगना देविका देवेंद्र एस. मंगलामुखी का। देविका बताती हैं- मैंने दिल्ली की सड़कों पर भीख मांगकर गुजारा किया। पढ़ाई-लिखाई छूट गई। जिन माता-पिता ने बचपन से लाड़ में पाला उन्होंने साथ छोड़ दिया।
नाच-गाकर भीख मांगी
सोचिए उस बच्चे पर क्या गुजरती होगी, जिसके ट्रांसजेंडर होने की वजह से उसे नाजुक उम्र में घर से निकाल दिया जाता है। मुझे किन्नर समाज के लोग अपने साथ ले गए लेकिन मुझे लगा कि यहां मेरा कुछ नहीं हो सकता। मुझे कुछ करना था। वहां से भाग निकली और नाच-गाकर भीख मांगने लगी। तभी कथक नृत्यांगना आचार्य कपिला राज (लखनऊ) ने मुझे देखा तो पूछा कि क्या तुम कथक करती हो ? मैं उन्हें नहीं जानती थी। उन्होंने कहा- यह मेरा कार्ड लो, कथक सीखना हो ? तो मेरे पास लखनऊ आना। मेरी मां ने बचपन में मुझे कथक सिखाया था, दो साल बाद मैं उनके पास पहुंची और ढाई साल उनसे कथक सीखा। स्थानीय एनजीओ से जुड़कर मैं पढ़ाई और जॉब करने लगी। फिर दिल्ली यूनिवर्सिटी आई और ग्रेजुएशन बाद इंग्लिश लिटरेचर में पीएचडी की।
मप्र में भी बने ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड
मैं चाहती हूं कि जैसे भोपाल में चक्रधर कथक केंद्र है, तो यहां कुछ सीटें ट्रांसजेंडर्स के लिए आरक्षित की जाएं, ताकि वे मुख्यधारा में जुड़ने लगें। मप्र में भी ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड बने तो यह अच्छी पहल होगी। यूपी में हॉस्टल में ट्रांसजेंडर के लिए आरक्षण रहता है। सोशल सिक्योरिटी व शिक्षा मिले तो परिवार अपने बच्चों को घर से नहीं निकालेंगे। पैरेंट्स समझें कि बच्चा आम लोगों जैसा नहीं है तो उसे परायों की भीड़ में न भेजें। उस पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है।
परिवार आज भी करता है घृणा
पिता की मृत्यु पर मैं घर गई, लेकिन परिवार वालों का बर्ताव नहीं बदला। मैंने पैतृक संपत्ति में हिस्सा लेने की कानूनी लड़ाई लड़ी और जीती। आज पूरी दुनिया मुझे स्वीकार कर रही है लेकिन मेरे परिवार वाले मुझे आज भी घृणा की दृष्टि से देखते हैं। मैं अपना फाउंडेशन भी संचालित कर रही हूं। मैं भविष्य में ट्रांसजेंडर बच्चों के लिए कथक केंद्र जल्दी ही शुरू करूंगी क्योंकि कला में कोई जेंडर, धर्म या जात नहीं होती। ट्रांसजेंडर कम्युनिटी में नृत्य संगीत का नैसर्गिक गुण होता है। यदि मौके मिले तो मुख्यधारा में शामिल होकर देश की तरक्की में भी योगदान दे सकते हैं। मैं वीगन हूं और जैनिज्म को फॉलो करती हूं।