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ग्लोबल वार्मिंग से दुनियाभर में अस्थिर हुईं वर्षा की गतिविधियां

ब्रिटिश व चीनी शोधकर्ताओं की रिपोर्ट,ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और पूर्वोत्तर अमेरिका में ज्यादा दिख रहा असर

सिडनी। एक हालिया शोध से पता चला है कि पिछली शताब्दी में मानवीय गतिविधियों के चलते बढ़ी गर्मी के कारण पृथ्वी के 75 प्रतिशत भू-भाग पर वर्षा की परिवर्तनशीलता बढ़ गई है, विशेष रूप से ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और पूर्वोत्तर अमेरिका में यह अधिक प्रभावी हुई है। इससे जुड़े चीनी शोधकर्ताओं और ब्रिटेन के मौसम विभाग के निष्कर्ष साइंस जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं। वे इस बात का पहला व्यवस्थित साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं कि जलवायु परिवर्तन वैश्विक वर्षा की गतिविधियों को अधिक अस्थिर बना रहा है। नए निष्कर्षों से पता चलता है कि 100 वर्षों में वर्षा की परिवर्तनशीलता पहले ही बदतर हो चुकी है, खास तौर पर ऑस्ट्रेलिया में यह एक प्रासंगिक मुद्दा है।

दुनिया के 75 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र बारिश से प्रभावित

शोध से पता चलता है कि 1900 के दशक से वर्षा में वैश्विक स्तर पर परिवर्तनशीलता में 1.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसका मतलब है कि समय के साथ बारिश का वितरण अधिक असमान है, जिससे या तो बारिश बहुत अधिक या बेहद कम हो रही है। शोधकर्ताओं ने आंकड़ों की जांच में पाया कि 1900 के दशक से, अध्ययन किए गए भूमि क्षेत्रों के 75 प्रतिशत से अधिक क्षेत्रों में वर्षा की परिवर्तनशीलता में वृद्धि हुई है। यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और पूर्वी उत्तरी अमेरिका विशेष रूप से इससे प्रभावित हुए हैं।

ये ऐसे क्षेत्र हैं, जिनके लिए विस्तृत और दीर्घकालिक अवलोकन उपलब्ध हैं। अन्य क्षेत्रों में, वर्षा में परिवर्तनशीलता का दीर्घकालिक रुझान बहुत प्रमुख नहीं था। ग्लोबल वार्मिंग वर्षा को कैसे प्रभावित करती है। इन निष्कर्षों को समझने के लिए, यह समझना जरूरी है कि कौन से कारक यह निर्धारित करते हैं कि एक तूफान कितनी भारी बारिश पैदा करता है और ये कारक ग्लोबल वार्मिंग से कैसे प्रभावित हो रहे हैं। पहला कारक यह है कि हवा में कितना जल वाष्प मौजूद है। गर्म हवा में ज्यादा नमी हो सकती है।

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