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16 साल में पहली बार तय समय से 8 दिन पहले पहुंचा मानसून, केरल में दी दस्तक, इस साल सामान्य से ज्यादा बारिश की उम्मीद

नई दिल्ली। भारत में मानसून ने इस बार 16 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया है। शनिवार को दक्षिण-पश्चिम मानसून ने केरल में दस्तक दी, जो कि अपने निर्धारित समय 1 जून से पूरे 8 दिन पहले है। IMD ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि 2009 के बाद यह पहला मौका है जब मानसून इतनी जल्दी आया है। इससे पहले 2009 में यह 9 दिन पहले 23 मई को पहुंचा था।

पिछले साल की तुलना करें तो 2024 में मानसून ने 30 मई को दस्तक दी थी, जबकि इस साल यह 24 मई को ही पहुंच गया। मौसम विज्ञानियों का कहना है कि इस साल अल नीनो के प्रभाव की संभावना नहीं है और सामान्य से ज्यादा बारिश का पूर्वानुमान है।

चार दिन से टिका था मानसून

मौसम विभाग के अनुसार मानसून चार दिन से अरब सागर में केरल से 40-50 किमी दूर रुका हुआ था, लेकिन शुक्रवार शाम को इसमें गति आई और शनिवार सुबह केरल तट पर पहुंच गया। इसके साथ ही, तमिलनाडु और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में भी मानसून के पहुंचने की संभावना जताई जा रही है।

4 जून तक मध्य-पूर्वी भारत में पहुंचेगा मानसून

IMD ने अनुमान जताया है कि एक सप्ताह के भीतर देश के दक्षिणी और पूर्वोत्तर राज्यों में मानसून पूरी तरह सक्रिय हो जाएगा। जबकि 4 जून तक यह मध्य और पूर्वी भारत के राज्यों को भी कवर कर सकता है। आमतौर पर मानसून 1 जून को केरल पहुंचता है और 8 जुलाई तक पूरे भारत को कवर कर लेता है। इसके बाद यह 17 सितंबर से लौटना शुरू करता है और 15 अक्टूबर तक पूरी तरह विदा हो जाता है।

जल्दी क्यों पहुंचा मानसून

इस साल मानसून के जल्दी आने के पीछे कई अहम वैज्ञानिक कारण सामने आए हैं। अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में नमी का स्तर सामान्य से अधिक रहा। समुद्र का तापमान भी सामान्य से ज्यादा दर्ज किया गया, जिससे मानसूनी हवाएं ज्यादा तेजी से सक्रिय हुईं। पश्चिमी हवाओं और समुद्री चक्रवातों की हलचल ने भी मानसून को आगे बढ़ाने में मदद की। जलवायु परिवर्तन भी इस पूरे मौसमीय बदलाव का एक बड़ा कारण माना जा रहा है।

मानसून की शुरुआती तारीख का बारिश की मात्रा से कोई संबंध नहीं

मौसम वैज्ञानिकों ने स्पष्ट किया है कि मानसून के जल्दी या देर से आने का इस बात से कोई संबंध नहीं है कि वर्षा कितनी होगी। यह संभव है कि मानसून जल्दी आए और बारिश कम हो या देर से आए और बारिश अधिक हो। कुल वर्षा की मात्रा मौसमी परिस्थितियों पर निर्भर करती है।

इतिहास में मानसून की शुरुआत के रिकॉर्ड

IMD के 150 वर्षों के आंकड़ों के अनुसार, सबसे जल्दी मानसून 11 मई 1918 को केरल में पहुंचा था। वहीं, सबसे देरी से मानसून 18 जून 1972 को केरल में दस्तक दी थी।

इस बार अल नीनो नहीं

मौसम विभाग ने अप्रैल में ही यह स्पष्ट कर दिया था कि 2025 के मानसून सीजन में अल नीनो के सक्रिय होने की संभावना नहीं है। इसका मतलब है कि इस साल सामान्य से अधिक बारिश हो सकती है और कम बारिश की आशंका बहुत कम है।

2023 में अल नीनो सक्रिय था, जिसकी वजह से मानसून सीजन में औसतन 6% कम बारिश हुई थी।

क्या होता है अल नीनो और ला नीना

अल नीनो में प्रशांत महासागर का तापमान 3 से 4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है। यह आमतौर पर हर 10 साल में दो बार प्रभावी होता है। इसके चलते भारत में असमान बारिश होती है, ज्यादा बारिश वाले क्षेत्रों में कम और कम बारिश वाले क्षेत्रों में अधिक वर्षा।

ला नीना के दौरान समुद्र का पानी तेजी से ठंडा होता है, जिससे वायुमंडल में बादल बनने की प्रक्रिया तेज होती है और अच्छी बारिश होती है। यह वैश्विक मौसम पर व्यापक प्रभाव डालता है।

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