पल्लवी वाघेला-भोपाल। त्योहार वह बहाना हैं, जिनके जरिए रिश्ते घर लौटते हैं। फैमिली कोर्ट के आंकड़ों को देखें तो यह बात सच लगती है। फेस्टिव सीजन यानी अगस्त से नवंबर के बीच सबसे अधिक समझौते हुए हैं। न केवल भोपाल, बल्कि प्रदेश के अन्य तीन बड़े शहरों की बात करें तो यहां भी शुरुआती सात महीनों की बजाए अंत के चार माह में अधिक राजीनामे हुए हैं। भोपाल में इस दौरान 419 मामलों में सुलह हुई है। जबकि पहले के सात माह में यह आंकड़ा 602 है।
बता दें, फैमिली कोर्ट के जज भी यह मानते हैं कि एक साथ बिताया क्वालिटी टाइम और सेलिब्रेशन रिश्तों को नई ऊर्जा देते हैं। इसके चलते बीते कुछ समय से नवाचार के तहत पारिवारिक मामलों में आपस में बात करने, घूमने जाने, सिनेमा और रेस्टोरेंट में साथ समय बिताने और साथ व्रत-त्योहार मनाने जैसी सलाह दी जा रही है।
केस-1
भाई-बहन के बीच पिता की जमीन को लेकर विवाद था। काउंसलिंग में समझ आया कि बहन केवल भाई के व्यवहार से आहत होकर जमीन की जिद कर रही है। जजों के जोर देने पर 8 साल बाद बहन, भाई को राखी बांधने पहुंची। भाई भी खुश हो गया। रक्षाबंधन के अगले हफ्ते ही बहन ने विवाद खत्म करने का आवेदन कोर्ट में दे दिया।
केस-2
करवाचौथ के दिन पत्नी का जन्मदिन भी था। कोर्ट की सलाह पर पति, जब पत्नी के मायके पहुंचा तो पता चला कि पत्नी ने उसके लिए व्रत रखा हुआ है। व्रत खोलने के बाद दोनों बच्चे को लेकर घूमने गए। पति ने बताया कि पहली करवा चौथ पर पत्नी गर्भवती थी। विवाद के चलते मायके चली गई। दंपति ने राजीनामा कर लिया।
केस-3
बेटे की लव मैरिज से आहत पिता ने उसे जायदाद से बेदखल कर दिया था। बेटे ने पांच साल पहले केस लगाया। कोर्ट की सलाह पर बहू दिवाली पर 3 साल की बेटी को लेकर बेंगलुरू से भोपाल आई। पोती को देखकर, दादा का मन पिघल गया और समझौता हो गया।
संवाद का जरिया
त्योहार न केवल अच्छी यादें बनाने, बल्कि भावनाएं व्यक्त करने का भी जरिया हैं। फैमिली कोर्ट के केसेस में यह नजर आता है कि गलतफहमी, रिश्ते में खाई का काम करती है। व्रत-त्योहार के जरिए लोगों को समीप लाने का प्रयास है। -सिंधु धौलपुरे, काउंसलर