भोपालमध्य प्रदेश

सांची विश्वविद्यालय में मूंज प्रशिक्षण कार्यशाला; छात्रों ने नए रंगों से बनाए कांसा की टोकरी, टी-कोस्टर, पेन स्टैंड, वॉल हैंगिग

सांची बौद्ध भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में मूंज कलाकृतियों को सिखाए जाने व संरक्षित करने के लिए कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। भारतीय चित्रकला विभाग द्वारा आयोजित की गई इस कार्यशाला में उत्तर प्रदेश के मेहवा जिले की असमां बेगम ने छात्र-छात्राओं व शिक्षकों को मूंज व कांसा कलाकृतियां बनाए जाने का प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। ये कार्यशाला रविवार तक चलेगी।

रायसेन में महिलाओं को प्रशिक्षित करने का प्रयास

सांची विश्वविद्यालय द्वारा प्रयास किया जा रहा है कि रायसेन जिले में महिलाओं को मूंज व कांसा से तैयार होने वाली कलाकृतियों को बनाए जाने का प्रशिक्षण दिया जाए, जिससे वह न सिर्फ स्किल्ड हो सकें बल्की इसके माध्यम से वो अपने लिए रोजगार भी पैदा कर प्रदेश में अपना स्टार्टअप भी शुरू कर सकें।

UP की मूंज कलाकार असमां बेगम दे रही हैं प्रशिक्षण

दरअसल, मूंज को मध्य प्रदेश में सरकंडा की घास के तौर पर भी जाना जाता है। प्रशिक्षण प्रदान कर रहीं असमां बेगम की तीन सदस्यीय टीम ने बताया कि शरद ऋतु में तालाब-पोखरों के किनारे लगने वाले मूंज और कांसा की हरी घास को तोड़ने के बाद दिन में धूप में तथा रात में ओस में रखा जाता है ताकि इसकी बुनाई कर कलाकृतियों को तैयार जा सके।

ईको फ्रेंडली टी कोस्टर, वॉल हैंगिंग, स्टैंड, टोकरी तैयार की गईं

सांची विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा प्रशिक्षण देने आए इन मूंज कलाकारों को कुछ डिजाइन प्रदान किए गए ताकि परखा जा सके कि इन मूंज कलाकृतियों में कितनी प्रकार का नयापन लाया जा सकता है। विश्वविद्यालय के छात्रों ने अलग-अलग फूड ग्रेड कलर्स का उपयोग कर कलाकृतियों को नया रंग भी प्रदान किया।

असमां बेगम के दल ने मूंज व कांसा की टोकरी, टी-कोस्टर, पेन स्टैंड, वॉल हैंगिग, रोटी रखने की टोकरी इत्यादि बनाने का प्रशिक्षण छात्र-छात्राओं को प्रदान किया। खास बात ये है कि मूंज से तैयार किया जाने वाला उत्पाद न सिर्फ खूबसूरत होता है बल्की ये ईको फ्रेंडली होता है और इसे बरसों तक उपयोग किया जा सकता है।

मूंज की कलाकृतियों को तैयार करने में लगता है मेहनत

भारतीय चित्रकला विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. सुष्मिता नंदी ने बताया कि उत्तर प्रदेश में मूंज व कांसा की कलाकृतियों को मुख्य रूप से मेहवा व लखीमपुर खीरी में बनाया जाता है। इन जगहों पर तैयार होने वाले उत्पाद को अमेरिका, यूरोप और अन्य देशों में भी भेजा जाता है। हालांकि, मूंज की इन कलाकृतियों को तैयार करने में काफी समय और मेहनत लगती है। इसकी बुनाई काफी बारीक होती है। पहले सुखाई गई घासों को पानी में भिगोकर रखा जाता है ताकि इनसे आसानी से मोड़-मोड़कर बुनाई कर अलग-अलग आकार दिए जा सकें।

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