नई दिल्ली। स्वामी विवेकानंद ने आज से 128 साल पहले साल 1983 में शिकागो (अमेरिका) में विश्व धर्म सम्मेलन में ऐतिहासिक भाषण दिया था। शिकागो में महान दार्शनिक संत ने पूरी दुनिया में भारत की ओर देखने की दृष्टि को ही बदल के रख दिया। लोगों ने इस भाषण के बाद उनको देवदूत संत की संज्ञा दी। उन्होंने अपना भाषण ‘मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों’ से शुरू किया था। जिसे सुनते ही उस सभा में उत्साह का तूफान आ गया। लगभग दो मिनट तक सभी लोग उनके लिए खड़े होकर तालियां बजाते रहे। पूरा सभागार करतल ध्वनि से गुंजायमान हो गया।
भारत की छवि गढ़ने में अहम भूमिका
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 में हुआ था। उनके जीवन का ये ऐतिहासिक भाषण साबित हुआ। संवाद का यह जादू शब्दों के पीछे छिपी पुरातन भारतीय संस्कृति, सभ्यता, अध्यात्म व उस युवा के त्यागमय जीवन का परिणाम था, जो शिकागो से निकला और पूरे विश्व में छा गया। उस भाषण का एक-एक शब्द अपने आप में एक परंपरा, एक जीवन व हजारों वर्षो की संत संतति से चले आ रहे संदेश का परिचायक हैं। इस अकेली घटना ने पश्चिम में भारत की एक ऐसी छवि बना दी, जो आजादी से पहले और इसके बाद सैकड़ों राजदूत मिलकर भी नहीं बना सके। अमेरिकी प्रेस ने विवेकानंद को उस धर्म संसद की महानतम विभूति बताया था और उनके बारे में लिखा, उन्हें सुनने के बाद हमें महसूस हो रहा है कि भारत जैसे प्रबुद्ध राष्ट्र में मिशनरियों को भेजकर हम कितनी बड़ी मूर्खता कर रहे थे। स्वामी विवेकानंद के इस भाषण के बाद भारत को एक अनोखी संस्कृति के देश के रूप में देखा जाने लगा।
क्यों गए थे स्वामी जी धर्म सम्मेलन में
दक्षिण गुजरात के काठियावाड़ के लोगों ने सबसे पहले स्वामी विवेकानंद को विश्व धर्म सम्मेलन में जाने का सुझाव दिया था। फिर चेन्नई के उनके शिष्यों ने भी उनसे वहां जाने का निवेदन किया। खुद विवेकानंद ने लिखा था कि तमिलनाडु के राजा भास्कर सेतुपति ने पहली बार उन्हें यह विचार दिया था। जिसके बाद स्वामीजी कन्याकुमारी पहुंचे थे।
शिकागो यात्रा के लिए शिष्यों ने जुटाया था धन
स्वामी जी जब चेन्नई लौटे तब उनके शिष्यों ने उनके शिकागो जाने के सारे इंतजाम कर लिए थे। अपने गुरु के लिए सभी ने मिलकर धन जुटा ली थी। लेकिन स्वामी जी ने कहा कि सारा जमा किया गया धन गरीबों में बांट दिया जाए।
जब ‘सपना’ बना धर्म सम्मेलन में जाने की वजह
एक दिन स्वामी विवेकानंद को सपना आया कि रामकृष्ण परमहंस समुद्र पार जा रहे हैं और उन्हें पीछे आने का इशारा कर रहे हैं। लेकिन विवेकानंद को कुछ समझ नहीं आया। जिसके बाद अपने सपने की सच्चाई जानने के लिए उन्होंने माता शारदा देवी से मार्गदर्शन मांगा। माता ने उन्हें इंतजार करने को कहा। तीन दिन बाद शारदा देवी को सपने में रामकृष्ण परमहंस गंगा पर चलते हुए और उसमें गायब होते हुए नजर आए। फिर विवेकानंद आए और वह पानी उन्होंने दुनिया के सारे लोगों पर छिड़का और उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। विवेकानंद के गुरुभाई से शारदा देवी ने कहा कि यह उनके गुरु की इच्छा है कि स्वामी विवेकानंद विदेश जाएं।
जानें किसका हिस्सा था ‘धर्म सम्मेलन’
साल 1893 का ‘विश्व धर्म सम्मेलन’ कोलंबस द्वारा अमेरिका की खोज करने के 400 साल पूरे होने पर आयोजित विशाल विश्व मेले का एक हिस्सा था। मिशिगन झील के किनारे 1037 एकड़ जमीन पर इस प्रदर्शनी में 2.75 करोड़ लोग आए थे। अमेरिकी नगरों में इस आयोजन को लेकर इतनी होड़ थी कि अमेरिकी सीनेट में वॉशिंगटन, न्यूयॉर्क, शिकागो और सेंट लुई के बीच मतदान कराना पड़ा, जिसमें शिकागो को बहुमत मिला। जिसके बाद तय हुआ कि ‘धर्म सम्मेलन’ विश्व मेले का हिस्सा है। हर दिन डेढ़ लाख से ज्यादा लोग आए थे।
ट्रेन से पहुंचे थे स्वामी भाषण देने
साल 31 मई 1893 के दिन स्वामी विवेकानंद ने मुंबई से यात्रा शुरू करके याकोहामा से एम्प्रेस ऑफ इंडिया नामक जहाज से वेंकुअर पहुंचकर ट्रेन से शिकागो भाषण देने पहुंचे थे। 30 जुलाई को वो शिकागो पहुंच गए। लेकिन पार्लियामेंट को शुरू होने में 1 महीने 11 दिन का समय था। शिकागो महंगा शहर था, इसलिए स्वामी विवेकानंद वो थोड़े सस्ते शहर बोस्टन चले गए। जहां उनकी मुलाकात हार्वर्ड में प्रोफेसर और स्कॉलर जॉन हेनरी राइट से हुई। वो अमेरिकन जनरल ऑफ ऑर्कियोलोजी के चीफ एडिटर भी थे। विवेकानंद से मिलकर वो उनके प्रशंसक बन गए।
हिंदू धर्म को सब धर्मों की मां कहा
जब विवेकानंद को पता चला कि पार्लियामेंट ऑफ वर्ल्ड रिलीजंस में बिना किसी क्रेडेंशियल के उसमें हिस्सा नहीं ले सकते हैं तो विवेकानंद ने ये बात राइट को बताई। इस पर राइट का जवाब था, ‘आप से क्रेडेंशियल्स मांगना स्वामी बिलकुल ऐसा है जैसे सूरज से उसके चमकने के अधिकार को लेकर पूछना।’ प्रोफेसर ने एक सिफारिशी खत लिखा, ‘Here is a man who is more learned than all our learned professors out together’। यानी सारे अमेरिकी प्रोफेसर्स के ज्ञान को मिला लिए जाए तो भी स्वामी विवेकानंद का ज्ञान उनसे ज्यादा होगा। जॉन हेनरी राइट ने स्वामी विवेकानंद के लिए रेलवे टिकट का इंतजाम भी किया। स्वामी जी ने 11 सितंबर, 27 सितंबर तक वहां 6 बार भाषण दिए। 11 सितंबर, 15 सितंबर, 19 सितंबर, 20 सितंबर, 26 सितंबर और 27 सितंबर। उस भाषण में विवेकानंद ने कहा कि मैं दुनिया में सबसे पुरानी संत परंपराओं वाले देश से आया हूं। उन्होंने कहा कि मैं उस देश से आया हूं जहां हर धर्म के लोगों का बाहें फैलाकर स्वागत किया गया। उन्होंने हिंदू धर्म को सब धर्मों की मां कहा। उन्होंने गीता का संदेश सुनाया कि तुम चाहे जिस पद्धति से, जिस रास्ते से आओगे, मैं उस रास्ते पर तुम्हें मिलूंगा। यानी सभी धर्म एक हैं।