नई दिल्ली। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने औषधि- प्रतिरोधी तपेदिक के निदान के लिए नया दिशानिर्देश जारी किया है और इसे एक नवीन दृष्टिकोण बताया है, जिसके तहत नवीनतम प्रौद्योगिकियों का उपयोग होता है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इस दृष्टिकोण में तपेदिक (टीबी) को खत्म करने के भारत के लक्ष्य को मजबूत करने की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन इसे लोगों तक पहुंचाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी ने तपेदिक पर डब्ल्यूएचओ के समेकित दिशानिर्देशों के तीसरे संस्करण में नैदानिक प्रौद्योगिकियों की एक नई श्रेणी: लक्षित अगली पीढ़ी के अनुक्रमण (टीएनजीएस) परीक्षण के इस्तेमाल की सिफारिश की। यह मार्गदर्शन 24 मार्च को आयोजित होने वाले विश्व तपेदिक दिवस से पहले जारी किया गया था। विशेषज्ञों ने कहा कि टीएनजीएस का उपयोग करके, आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों की तुलना में किसी व्यक्ति की दवा-प्रतिरोधक प्रोफाइल का व्यापक मूल्यांकन किया जा सकता है और उपचार को वैयक्तिक बनाने में मदद मिल सकती है।
पीएम को लिखा खत – देश में नहीं मिल रही हैं दवाएं
देश में इस समय टीबी के मरीज परेशान हैं। अचानक टीबी के उपचार के लिए मौजूद दवाइयों की कमी हो गई है। इसे लेकर टीबी पीड़ित, डॉक्टर और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने पीएम मोदी को पत्र लिखा है कि टीबी की दवाओं में कमी से सरकार के टीबी-मुक्त भारत कार्यक्रम को झटका लग सकता है। पत्र में कहा गया है कि वर्तमान में इलाज करा रहे लोगों को उपचार में रुकावट का सबसे अधिक जोखिम है। दवाइयों की कमी से समुदाय में बीमारी का खतरा बढ़ जाएगा जिससे दिक्कत हो सकती है। इंडिया टीबी फोरम के सह-अध्यक्ष डॉ. टी. सुंदररमन और डॉ. योगेश जैन ने केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव और इंडिया टीबी फोरम के अध्यक्ष को पत्र लिखा है, जिसमें राजस्थान, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में जमीनी स्तर से स्टॉक-आउट की रिपोर्टों की ओर इशारा किया गया है।
भारत को क्षयरोग मुक्त बनाने मिलकर काम करें
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने लोगों से भारत को क्षयरोग मुक्त बनाने के लिए मिलकर काम करने का आह्वान किया। विश्व क्षय रोग दिवस की पूर्व संध्या पर संदेश में राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि इस दिन का उद्देश्य जनता को क्षयरोग के वैश्विक प्रभाव के बारे में जागरूक करना, बीमारी को नियंत्रित करने संबंधी चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और इसे रोकने के प्रयासों का समर्थन करना है। यह दिन हमें क्षय रोग की शीघ्र पहचान, उपचार और रोकथाम के महत्व की भी याद दिलाता है। मैं सभी से भारत को क्षयरोग मुक्त बनाने के लिए मिलकर काम करने और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सभी प्रयास करने का आह्वान करती हूं। विश्व क्षय रोग दिवस हर साल 24 मार्च को क्षयरोग के बारे में जन जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से मनाया जाता है। डॉ. रॉबर्ट कोच ने सन 1882 में इसी दिन घोषणा की थी कि उन्होंने क्षयरोग का कारण बनने वाले जीवाणु की खोज कर ली है, जिससे इस बीमारी के निदान का मार्ग प्रशस्त हुआ। उल्लेखनीय है कि डब्ल्यूएचओ ने इस सप्ताह ब्राजील, जॉर्जिया, केन्या और दक्षिण अफ्रीका की सरकारों के साथ विकसित एक मॉडलिंग अध्ययन भी जारी किया है।