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कठिन हालातों से नहीं मानी हार, बच्चों के लिए समाज के साथ खुद से भी संघर्ष

कठिन हालातों से नहीं मानी हार, बच्चों के लिए समाज के साथ खुद से भी संघर्ष

पल्लवी वाघेला/भोपाल। मां को बच्चों का प्रथम शिक्षक माना जाता है। लेकिन कई बार मां को बच्चों से अलग होना पड़ता है या फिर बच्चों की नजर में खुद को मजबूत दिखाना पड़ता है। इस मदर्स डे पर भोपाल की ऐसी ही दो महिलाओं की कहानी हैं। दोनों वर्तमान में वकील हैं। एक ने बच्चों की कस्टडी की लड़ाई लड़ी और अब दूसरों की मदद कर रही है। दूसरी ने पति से मिले धोखे के बाद बेटी को डिप्रेशन से निकालने और परवरिश के लिए 20 साल बाद किताबें हाथ में ली और आज अन्य के लिए प्रेरणा बनी हुई है।

चाहती हूं कोई मां बच्चे से अलग न हो : मीनाक्षी

‘मैंने बच्चों की कस्टडी के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी, अब तो बच्चे बालिग हो गए हैं तो मेरी यह लड़ाई अब बची नहीं, लेकिन चाहती हूं कि किसी मां को अपने बच्चों से दूर न रहना पड़े।’ यह कहना है एडवोकेट मीनाक्षी नरेंद्र का। लालघाटी क्षेत्र की रहने वाली मीनाक्षी घरेलू हिंसा पीड़ित महिलाओं के लिए लड़ रही हैं। वह अब तक करीब एक हजार महिलाओं की मदद कर चुकी हैं। साल 2002 में पुणे में शादी के बाद करीब 12 साल तक मीनाक्षी केवल इसलिए पति की प्रताड़ना सहती रही कि बच्चों की परवरिश ठीक से होती रहे। लेकिन आखिर सब्र का बांध टूट गया। पति ने बच्चों को रख उन्हें घर से निकाल दिया। पति ने तलाक का केस लगा दिया। न बच्चों से मिलने दिया जाता था और न ही बात कराई जाती थी। कोर्ट में सालों तक केस चलता रहा। इस बीच मीनाक्षी को अहसास हुआ कि वह अपना केस तब मजबूत कर पाएंगी जब खुद कानून जानेंगी। फिर उन्होंने लॉ की पढ़ाई की। पति के खिलाफ वह केस जीत गई। हालांकि, बच्चों की कस्टडी उस वक्त उन्हें नहीं मिल पाई। अब बच्चे खुद समझदार हो चुके हैं। मीनाक्षी कहती हैं कि वह एनजीओ की मदद से महिलाओं को जागरूक करने का काम करती हैं। अब तो पुलिस विभाग और महिला आयोग द्वारा भी उन्हें गेस्ट स्पीकर के रूप में आमंत्रित किया जाता है। इसके अलावा वे घरेलू हिंसा पीड़ित महिलाओं की फ्री काउंसलिंग भी करती हैं।

बेटी की जिंदगी संवारने ली कानून की शिक्षा : अमिता

तुम कम पढ़ी-लिखी हो, तुम्हारा स्टैंडर्ड मुझसे मैच नहीं करता। ये ताने आए दिन सुनती थी, लेकिन सोचा नहीं था कि वह एक रात अचानक हमें धोखा देकर चले जाएंगे। लॉकडाउन की उस सुबह जब सोकर उठी तो पति गायब थे। घर में एक रुपया भी नहीं था, न खाने का सामान था। एटीएम कार्ड व अकाउंट बंद करा दिए थे। लॉकडाउन के कारण मायके वाले भी जल्दी नहीं पहुंच पा रहे थे। कुछ दिन तो भूखे गुजारे। इससे बेटी पूरी तरह टूट गई थी। वह डिप्रेशन में जा रही थी। उसकी अच्छी परवरिश और फाइटिंग स्पिरिट लौटाने के लिए फैसला लिया कि अपनी कमजोरी को ताकत में बदलना है।’ होशंगाबाद रोड निवासी अमिता कौरव लॉ की पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं और सिंगल मदर के रूप में बेटी को अच्छी परवरिश दे रही हैं। मां- बेटी को भनक भी नहीं थी कि पति के मन में क्या चल रहा है। अमिता कहती हैं – खुद पर गुस्सा आता था कि पढ़ाई क्यों नहीं की। ऐसे में तय किया कि 20 साल बाद ही सही दोबारा पढ़ाई शुरू करना है ताकि बेटी को भी हिम्मत मिले। पिता के जाने के बाद 13 साल की बेटी अवसाद में जा रही थी। उसे लगता था कि अब उसकी और मेरी जिंदगी में कुछ नहीं बचा। आज मेरे साथ-साथ बेटी भी कांफिडेंट है। मैंने लॉ किया ताकि बेटी और अन्य पीड़िताओं की मदद कर संकू। अमिता का केस कोर्ट में विचाराधीन है, लेकिन वह अपने बूते बेटी को मजबूत भविष्य देने के लिए संघर्ष कर रही हैं।

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