
नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में दुष्कर्म पीड़िताओं के गर्भपात (MTP) को लेकर पुलिस और अस्पतालों के लिए जरूरी दिशा-निर्देश जारी किए हैं। यह आदेश एक 17 वर्षीय नाबालिग पीड़िता के मामले की सुनवाई के दौरान दिए गए, जिसे एम्स अस्पताल गर्भपात के लिए ले जाया गया था लेकिन पहचान पत्र न होने पर उसकी अल्ट्रासाउंड जांच में 13 दिन की देरी हुई।
पहचान के लिए अब आईडी कार्ड नहीं होगा जरूरी
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जब कोई दुष्कर्म पीड़िता (चाहे नाबालिग हो या बालिग) पुलिस के साथ अस्पताल लाई जाती है या कोर्ट या चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (CWC) के निर्देश पर लाई जाती है, तो अस्पताल या डॉक्टर उसकी पहचान के लिए पहचान पत्र की मांग नहीं कर सकते। ऐसी स्थिति में पुलिस अधिकारी द्वारा की गई पहचान ही पर्याप्त मानी जाएगी। यह फैसला इसलिए लिया गया ताकि पीड़िताओं को जरूरी मेडिकल जांच और गर्भपात की सुविधा समय पर मिल सके और उन्हें किसी तरह की परेशानी न हो।
24 हफ्ते से अधिक की गर्भावस्था पर भी तुरंत मेडिकल बोर्ड बनेगा
न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि यदि पीड़िता की गर्भावस्था 24 हफ्तों से अधिक हो जाती है, तो मेडिकल बोर्ड के गठन के लिए किसी कोर्ट आदेश का इंतजार नहीं किया जाएगा। अस्पताल को खुद ही तुरंत मेडिकल बोर्ड बनाना होगा और जरूरी जांच कर रिपोर्ट तैयार करनी होगी। यह रिपोर्ट तुरंत संबंधित अधिकारियों को सौंपी जाएगी ताकि पीड़िता यदि कोर्ट में गर्भपात की अनुमति के लिए पहुंचे तो उसे किसी तरह की देरी न हो।

गर्भपात के बाद भ्रूण को सुरक्षित रखा जाएगा
कोर्ट ने यह भी कहा कि जब दुष्कर्म पीड़िता का गर्भपात किया जाता है तो भ्रूण को वैज्ञानिक और सुरक्षित तरीके से संरक्षित किया जाना चाहिए ताकि भविष्य में डीएनए जांच या अन्य फोरेंसिक जांच के लिए उसका उपयोग किया जा सके।
एम्स की लापरवाही पर कोर्ट ने जताया गहरा असंतोष
इस केस में 17 साल की नाबालिग पीड़िता को एम्स अस्पताल ले जाया गया था। पुलिस की मौजूदगी के बावजूद डॉक्टरों ने यह कहकर अल्ट्रासाउंड करने से इनकार कर दिया कि पीड़िता के पास कोई पहचान पत्र नहीं है। इस कारण 13 दिन की देरी हुई और जब अल्ट्रासाउंड किया गया तो बताया गया कि गर्भावस्था 25 हफ्तों से अधिक हो चुकी है। इसके बाद डॉक्टरों ने कहा कि मेडिकल बोर्ड की जांच अब कोर्ट के आदेश के बिना नहीं हो सकती।
कोर्ट के आदेश के बाद जब मेडिकल बोर्ड ने जांच की तो यह पाया गया कि पीड़िता की गर्भावस्था केवल 24 हफ्तों की ही थी और इस मामले में कोर्ट के आदेश की कोई आवश्यकता नहीं थी। हाईकोर्ट ने एम्स के इस पूरे व्यवहार को लापरवाही भरा बताया।
सभी संबंधित संस्थाओं को भेजा जाएगा आदेश
कोर्ट ने अपने रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया है कि यह आदेश दिल्ली हाईकोर्ट लीगल सर्विस कमेटी, दिल्ली पुलिस कमिश्नर, दिल्ली सरकार और भारत सरकार को भेजा जाए, ताकि सभी अस्पताल, डॉक्टर और पुलिस अधिकारी इन निर्देशों को जानें और इनका सख्ती से पालन करें।
कोर्ट ने यह भी कहा कि इस फैसले का हिंदी अनुवाद कराया जाए और हाईकोर्ट की वेबसाइट के जजमेंट सेक्शन में इसे अपलोड किया जाए ताकि आम लोगों को भी इसकी जानकारी हो सके।
किन वकीलों ने की केस की पैरवी
इस केस में नाबालिग पीड़िता की ओर से एडवोकेट अन्वेष मधुकर, प्राची निर्वाण, इशत सिंह और प्रांजल शेखर ने पैरवी की। राज्य सरकार की ओर से अपर स्थायी वकील अमोल सिन्हा के साथ एडवोकेट अश्विनी कुमार और क्षितिज गर्ग उपस्थित रहे। एम्स की ओर से एडवोकेट सत्य रंजन स्वैन और स्वाति तोमर ने पक्ष रखा।