
भोपाल। वर्ल्ड अर्थ डे हर साल 22 अप्रैल को मनाया जाता है। इस दिन को मनाने के पीछे क्लाइमेट चेंज और प्रदूषण जैसे कई जरूरी मुद्दों के बारे में लोगों को जागरूक बनाने की कोशिश करना है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि पृथ्वी पर मौजूद सभी संसाधनों का इस्तेमाल हमें ऐसे करना चाहिए, जिससे हम अपने आने वाली पीढ़ी के लिए जीवन जीने के लिए अनुकूल वातावरण और संसाधन छोड़ सकें। शहर में कुछ ऐसे लोग हैं, जो कि पर्यावरण के हितैषी हैं और सालों से इस दिशा में अपने प्रयासों से धरती की सुरक्षा के लिए स्वच्छ व हरा-भरा पर्यावरण बनाने का कार्य कर रहे हैं। कोई प्लास्टिक और टेक्सटाइल वेस्ट के जरिए क्रिएटिव वर्क करके कचरे को लैंडफील में जाने से रोक रहा है, तो कोई साज-सजावट का सामान प्लास्टिक की बजाए गोबर शिल्प कला में तैयार कर रहा है।
100 फीसदी बायोडिग्रेडेबल सामान
गोबर अपने आसपास के वातावरण को सकारात्मक उर्जा से भर देता है। हम गोबर के ऐसे उत्पाद बनाते हैं, जो कि घर के एंट्रेंस से लेकर घर के भीतर तक साज-सजावट में इस्तेमाल किए जा सकते हैं। जैसे गोबर का तोरण, जिसके नीचे से निकलते समय गोबर का स्पर्श होना शुभ होता है। इसी तरह मुख्य दरवाजे पर वॉल हैंगिंग बनाते हैं, जिस पर गणेशजी की पेंटिंग होती है, जो कि घर से निकलते समय छूकर जाने पर शुभ भावनाओं का संचार करती है। मैं अपनी माताजी पुष्पा राठौर के साथ मिलकर गोबर के उत्पाद पूरे देश में उपलब्ध करा रहा हूं, क्योंकि यह साजसजावट का सामान 100 फीसदी बायोडिग्रेडेबल होता है, जिससे पर्यावरण सुरक्षित रहता है। इन उत्पादों की देशभर से अच्छी मांग आ रही है। – जितेंद्र कुमार राठौर, गोबर शिल्पी
देश-विदेश में जा रहे फैब्रिक टॉयज
सस्टेनेबिलिटी कोे लेकर हम काम कर रहे हैं, जिसकी जानकारी देने देश-विदेश की यूनिवर्सिटी से स्टूडेंट्स इंटर्नशिप करने हमारे यहां आते हैं। हाल में कोलंबिया यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स ने यहां आकर देखा कि हम प्लास्टिक वेस्ट व फैब्रिक स्क्रैप से डिजाइनर प्रोडक्ट्स बनाकर यूके, ऑस्ट्रेलिया, यूएस व अन्य देशों तक पहुंचा रहे हैं। महाशक्ति सेवा केंद्र में 30 महिलाएं मिलकर कपड़े से खिलौने बनातीं हैं। इसके अलावा टोट बैग, लैपटॉप बैग, क्रॉस बैग बनाते हैं। भोपाल के कई होटल्स ने इन्हें अपने यहां डिस्प्ले किया है। इसके जरिए महिलाओं को नियमित रूप से रोजगार मिल रहा है और कई टन टेक्सटाइल वेस्ट लैंडफील में जाने से रुकता है, जिससे धरती प्रदूषित होने बचती है। – पूजा आयंगर, महाशक्ति सेवा केंद्र
17 साल में पांच राज्यों में लगाए 3.50 लाख से अधिक पौधे
2008 में मुंबई में मेरा ब्रेन ट्यूमर का आॅपरेशन हुआ। तभी मैंने संकल्प लिया कि ठीक होने के बाद पौधरोपण करूंगा और उनकी रक्षा करूंगा। इसके बाद सितंबर 2008 से मैंने चिनार पार्क से पौधरोपण की शुरुआत की और 17 साल में अभी तक 3 लाख 52 हजार 928 पौधे लगा चुका हूं। वहीं, विभिन्न कार्यक्रमों में मंच पर 4 लाख 27 से अधिक पौधे अतिथियों को भेंट किए। हम जिन पौधों को लगाते हैं उनका हिसाब रखते हैं और मॉनिटरिंग भी करते हैं। इस समय मप्र के अलावा महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में 2,000 से अधिक वॉलेंटियर्स जुड़े हुए हैं, जो पेड़-पौधों की देखरेख करते हैं। मुझे नेपाल में अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण योद्धा सम्मान, दिल्ली में राष्ट्रीय पर्यावरण दूत सम्मान सहित कई अवॉर्ड मिल चुके हैं। – सुनील दुबे, वृक्षमित्र