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दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) के निष्क्रिय हो जाने के बाद चीन और पाकिस्तान अब इस क्षेत्र में एक नए क्षेत्रीय गुट के निर्माण की योजना बना रहे हैं। इसका उद्देश्य SAARC की जगह एक वैकल्पिक संगठन खड़ा करना है, जो राजनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक रूप से इस क्षेत्र में चीन की पकड़ को मजबूत करे।
SAARC की स्थापना 8 दिसंबर, 1985 को बांग्लादेश की राजधानी ढाका में हुई थी और इसमें भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और मालदीव शामिल थे। अफगानिस्तान 2007 में इससे जुड़ा। लेकिन 2016 में उरी आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान की मेजबानी में होने वाली बैठक का बहिष्कार कर दिया, जिसके बाद से संगठन निष्क्रिय है।
19 जून को चीन के कुनमिंग शहर में एक अहम बैठक हुई, जिसमें चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश के प्रतिनिधि शामिल हुए। रिपोर्ट्स के अनुसार, इसी बैठक में दक्षिण एशिया में एक नए गुट की नींव रखने पर चर्चा की गई। इससे पहले मई में तीनों देशों के बीच एक त्रिपक्षीय बैठक हुई थी जिसमें चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के विस्तार और तालिबान-शासित अफगानिस्तान में सहयोग को लेकर सहमति बनी थी। चीन इस क्षेत्र में अपनी ब्रिज टू कनेक्टिविटी नीति के तहत एक वैकल्पिक क्षेत्रीय संगठन बनाना चाहता है, जिसे पाकिस्तान ने खुलकर समर्थन दिया है।
जहां एक ओर चीन और पाकिस्तान इस नए संगठन को आकार देने में जुटे हैं, वहीं बांग्लादेश ने इस पूरी योजना से किनारा कर लिया है। बांग्लादेश के विदेश मामलों के सलाहकार एम तौहीद हुसैन ने स्पष्ट किया है कि कुनमिंग में हुई बैठक राजनीतिक नहीं बल्कि आधिकारिक स्तर की थी और उसमें किसी भी प्रकार के गठबंधन को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई। बांग्लादेश ने इस योजना को खारिज करते हुए कहा है कि वह किसी ऐसे संगठन का हिस्सा नहीं बनेगा, जिससे क्षेत्रीय असंतुलन और विवाद बढ़ें।
राजनयिक सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि भारत को इस संभावित नए गुट में शामिल होने का निमंत्रण दिया जा सकता है, लेकिन मौजूदा हालातों और इसके स्वतंत्र हितों को देखते हुए भारत के इसमें शामिल होने की संभावना बेहद कम है।
भारत लंबे समय से SAARC को पुनर्जीवित करने की वकालत करता आया है और क्षेत्रीय एकता के लिए पहले ही BIMSTEC (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation) और IORA (Indian Ocean Rim Association) जैसे अन्य विकल्पों की ओर रुख कर चुका है।
SAARC की आखिरी समिट 2014 में काठमांडू, नेपाल में हुई थी। 2016 में इस्लामाबाद में होने वाली बैठक भारत और अन्य देशों द्वारा बहिष्कार के चलते रद्द हो गई। भूटान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश ने भी आतंकवाद और क्षेत्रीय हस्तक्षेप का हवाला देते हुए हिस्सा लेने से मना कर दिया। तब से लेकर अब तक SAARC निष्क्रिय है।
चीन की यह नई पहल केवल आर्थिक नहीं बल्कि एक बड़ी कूटनीतिक और सामरिक रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह चीन के Belt and Road Initiative (BRI) के विस्तार और भारत को क्षेत्रीय प्रभाव से काटने की कोशिश हो सकती है।