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रासायनिक कचरा घटनास्थल पर डंप करने के साथ नदी में बहाया, इसके होंगे गंभीर परिणाम

हरदा फैक्ट्री हादसा : पर्यावरणविद् पांडे के गंभीर आरोप

भोपाल। हरदा पटाखा फैक्ट्री हादसा शासन- प्रशासन की लापरवाही का नतीजा था। हादसे के बाद भी प्रशासन नहीं जागा है। पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (पीसीबी) अधिकारियों ने मौका मुआयना करना तक जरूरी नहीं समझा। फैक्ट्री का रासायनिक कचरा घटनास्थल पर डंप करने के साथ ही 400 मीटर दूर अजनाल नदी में बहा दिया गया। नियमानुसार कचरे का वैज्ञानिक निष्पादन करने की जरूरत है, ताकि भविष्य के खतरे को कम किया जा सके। यह आरोप पर्यावरणविद् डॉ. सुभाषचंद्र पांडे ने रविवार को पत्रकार वार्ता में लगाए। उन्होंने बताया कि पटाखा फैक्ट्री में विस्फोट से जहां भीषण जन-धन की हानि हुई, वहीं आने वाली पीढ़ियों पर भी खतरा मंडरा रहा है। पर्यावरणीय हानि से पैदा होने वाले नवजातों में अनुवांशिक बीमारियों की संभावना है। साथ ही बहरेपन और कैंसर जनित बीमारियों का खतरा भी बढ़ा है।

जल और जमीन भी प्रदूषित

उन्होंने कहा कि जिस स्थान पर फैक्ट्री थी, उससे 400 मीटर दूर अजनाल नदी बहती है। यह नर्मदा की सहायक नदी है। इतनी अधिक मात्रा में एकसाथ पटाखे फटने से जलीय जीवों की मृत्यु दर बढ़ने का खतरा बढ़ा है। उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारियों ने इसका कचरा नदी में प्रवाहित करवा दिया। आग बुझाने में करीब 30 लाख लीटर पानी का इस्तेमाल किया गया।

सांस संबंधी बीमारियों का खतरा

पटाखे में गन पाउडर का उपयोग किया जाता था। इसमें पोटैशियम, सल्फर और कार्बन समेत एक दर्जन प्रकार के रसायन होते हैं। इनके एक साथ जलने से आसपास की आबोहवा बुरी तरह प्रभावित हुई है। ऐसे में रहवासियों को सांस संबंधी बीमारियों होने का खतरा बढ़ा है।

भूकंपीय कंपन की तीव्रता पांच रिक्टर स्केल से अधिक थी

पटाखा फैक्ट्री में विस्फोट के बाद इसकी आवाज 35 से 40 किमी दूर तक सुनी गई। डेढ़ से सवा दो किमी तक कंपन हुआ। 500 मीटर के दायरे में भूकंप की तरह झटके महसूस किए गए। इसका भूकंपीय कंपन पांच रिक्टर स्केल से अधिक था।

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