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वेस्टर्न भोपाल बायपास से भोज वेटलैंड को खतरा, रामसर साइट दर्जा छिनने का डर

शिकायत पर स्विटजरलैंड के रामसर संधि मुख्यालय ने चेताया

संतोष चौधरी-भोपाल। राज्य सरकार के एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट वेस्टर्न भोपाल बायपास के निर्माण के चलते भोपाल से भोज वेटलैंड रामसर साइट का टैग हटने का खतरा मंडरा रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ के अधीन स्विट्जरलैंड स्थित रामसर संधि मुख्यालय ने पूर्व मंत्री दीपक जोशी को पत्र लिखकर इस बारे में जानकारी दी है कि आर्टिकल 3.2 के उल्लंघन पर भोज वेटलैंड को रामसर साइट की सूची से बाहर किया जा सकता है।

पूर्व में जोशी ने इस बारे में पत्र के जरिए मुख्यालय की महासचिव डॉ. मुसोंडा मुंबा से शिकायत की थी। राज्य सरकार मंडीदीप के इटायाकलां से फंदा जोड़ तक 41 किमी लंबा वेस्टर्न भोपाल बायपास बनाने जा रही है। इसमें कोलार और हुजूर तहसील के बाघ भ्रमण क्षेत्र कालापानी, महाबड़िया, बोरदा, भानपुरा सहित 17 गांवों की 600 एकड़ जमीन के अधिग्रहण की प्रक्रिया जारी है। इसका करीब 12 किमी का हिस्सा भोज वेटलैंड में आ रहा है। इनमें झागरिया खुर्द, काकोड़िया सहित कई गांव शामिल हैं।

पीपुल्स समाचार ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया था। इस बारे में पर्यावरणविद सुभाष सी. पांडे ने कहा कि भोजवेटलैंड ऐसी रामसर साइट हैं जिसके कैचमेंट में 99 गांव आते हैं। इन जगहों पर निर्माण बहुत ही संवेदनशील है। कैचमेंट में बे-सिर पैर के निर्माण नहीं होना चाहिए। निर्माण से पानी की गुणवत्ता और मात्रा, भू-जल स्तर, प्रवासी पक्षियों और स्थानीय जलवायु प्रभावित होती है। वेटलैंड बुरी तरह प्रभावित होता है।

दीपक जोशी ने रामसर संधि मुख्यालय को लिखा था पत्र

पूर्व मंत्री जोशी ने रामसर संधि मुख्यालय को शिकायत की थी कि इस प्रोजेक्ट के 12 किमी का हिस्सा बड़े तालाब (भोज वेटलैंड) के कैचमेंट से होकर गुजरेगा। यहां से कोलांस नदी का पानी बड़े तालाब में आता है। इस प्रोजेक्ट से बड़े तालाब का कैचमेंट एरिया और कोलांस नदी के पानी का भराव बाधित होगा। इससे बड़ा तालाब स्थायी रूप से नष्ट हो सकता है। जोशी की शिकायत के मुताबिक, इस प्रोजेक्ट से बड़े तालाब का ईकोलॉजिकल सिस्टम, प्रवासी पक्षियों का आवागमन, जीव जंतु और वनस्पतियां नष्ट हो जाएंगी। सरकार ने इस प्रोजेक्ट से बड़े तालाब पर होने वाले पर्यावरणीय प्रभाव के अध्ययन पर ध्यान ही नहीं दिया। इस बारे में पर्यावरण विभाग के अधिकारियों से बात करने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने फिलहाल कुछ भी कहने से इनकार कर दिया है। जोशी ने संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस, संयुक्त राष्ट्र संघ पर्यावरण कार्यक्रम की महासचिव इंगेर एंडरसन और जनरल डॉ. मुसोंडा मुंबा को भी इस बारे में पत्र लिखा। जोशी ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मप्र के राज्यपाल और मुख्यमंत्री को भी पिछले माह पत्र लिखा है।

क्या है रामसर संधि

रामसर संधि के आर्टिकल 3.2 के तहत किसी भी पक्षकार देश के लिए यह बंधनकारी है कि यदि वेटलैंड के इकोलॉजिकल सिस्टम में कोई परिवर्तन आता है, तो इसकी सूचना तत्काल रामसर मुख्यालय को देनी होगी। इस परिवर्तन का कारण तकनीकी विकास, प्रदूषण या अन्य मानवीय हस्तक्षेप हो सकता है। ऐसे में वह उसे रामसर साइट के मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड से हटा दिया जाएगा। इसका आशय रामसर साइट का टैग हट जाना होता है। इससे पहले राजस्थान के केवलादेव नेशनल पार्क और लोक टेक लेक को मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड से हटाया जा चुका है।

प्रोेजेक्ट की खामियां

  • सोशल इम्पैक्ट रिपोर्ट तो बनाई गई है, लेकिन इसके कॉलम 3 में पेड़, कॉलम 15 में पर्यावरण और कॉलम 18 में जल निकासी के बारे में कोई प्रभाव नहीं बताया गया है। यानी इसका पर्यावरणीय अध्ययन नहीं हुआ।
  • समसगढ़ के पास 11वीं सदी के पुरातत्व महत्व के शिवमंदिर के अवशेष और बावड़ियों के पास से बायपास निकाला जा रहा है, जबकि इसके 100 मीटर के दायरे में निर्माण नहीं किया जा सकता है।

पूरी दुनिया जल, जंगल और जमीन को लेकर चिंतित है, लेकिन हमें 11वीं सदी की धरोहर बड़े तालाब की परवाह नहीं है। हमने वेस्टर्न भोपाल बायपास के बनने से भोपाल के वेटलैंड और इकोलॉजिकल सिस्टम बिगड़ने के संबंध में संयुक्त राष्ट्र और रामसर संधि मुख्यालय को पत्र लिखा था। रामसर मुख्यालय ने कहा है कि वे इस मामले में चिंतित हैं और भारत सरकार के संपर्क में हैं। मुझे जानकारी दी गई है कि यदि इस प्रोजेक्ट को नहीं रोका गया तो आर्टिकल 3.2 के तहत कार्रवाई कर दी जाएगी। – दीपक जोशी, पूर्व मंत्री

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