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Baisakhi 2023: बैसाखी आज… क्यों मनाया जाता है यह पर्व ? जानें इसका महत्व और मान्यताएं

नई दिल्ली। देशभर में बैसाखी का त्योहार बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाया जा रहा है। बैसाखी का त्योहार वसंत ऋतु की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। इस पर्व को सिख समुदाय के लोग नए साल के रूप में मनाते हैं। इस दिन विधिवत तरीके से अनाज की पूजा करने के साथ अच्छी फसल के लिए भगवान को शुक्रिया कहते हैं। बैसाखी के कई अलग-अलग नाम हैं।

बैसाखी के अलग-अलग नाम

देश के विभिन्न हिस्सों में बैसाखी को अलग-अलग नामों से जानते हैं। असम में इसे बिहू, केरल में पूरम विशु, बंगाल में नबा वर्ष जैसे नामों से जाना जाता है। इस दिन सूर्य का मीन राशि से निकलकर मेष राशि में प्रवेश होता है। इस दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं, एक दूसरे को बधाई एवं शुभकामनाएं देते हैं और खुशियां मनाते हैं।

क्यों मनाते हैं बैसाखी पर्व ?

सिख समुदाय बैसाखी को नए साल के रुप में मनाते हैं। इस दिन तक फसलें पक जाती हैं और उनकी कटाई होती है, उसकी खुशी में भी ये त्योहार मनाया जाता है। इसका एक धार्मिक महत्व भी है। बता दें कि सिखों के 10वें गुरु गोविन्द सिंह जी ने बैसाखी के अवसर पर 13 अप्रैल 1699 को खालसा पंथ बनाया था, इसलिए भी सिख समुदाय के लिए बैसाखी का विशेष महत्व है।

बैसाखी का नाम कैसे पड़ा ?

बैसाखी पर्व के समय आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है। बता दें कि विशाखा नक्षत्र पूर्णिमा में होने के कारण इस माह को बैसाख कहते हैं। बैसाख माह के पहले दिन को बैसाखी कहा गया है। इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, जिसे मेष संक्रांति भी कहा जाता है।

बैसाखी पर्व का महत्व

बैसाखी पर्व का सिख धर्म के साथ-साथ हिंदू सनातन धर्म में भी अधिक महत्व है। सिख धर्म के संस्थापक क्योंकि मूल रूप से सनातन धर्म के थे, यही वजह है कि सिक्खों के त्योहार कहीं न कहीं हिन्दू रीति रिवाजों से आज भी जुड़े हुए हैं। मान्यताओं के अनुसार, मुनि भागीरथ ने देवी गंगा को धरती में उतारने के लिए कठोर तपस्या की थी और आज के दिन ही उनकी तपस्या पूर्ण हुई थी। इसलिए आज के दिन गंगा स्नान के साथ गंगा की पूजा करने से विशेष फलों की प्राप्ति होती है।

कैसे मनाई जाती है बैसाखी ?

सिख समुदाय के लोग इस दिन सुबह उठकर गुरुद्वारे जाते हैं। इस दिन गुरु ग्रंथ साहिब जी के स्थान को जल और दूध से शुद्ध किया जाता है। उसके बाद पवित्र खालसा पंथ को रखा जाता है। घरों में भी लोग इस दिन विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। इसके बाद शाम को घर के बाहर लकड़ियां जलाई जाती हैं और लोग मिलजुल कर भांगड़ा करते हैं।

(नोट: यहां दी गई सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। हम मान्यता और जानकारी की पुष्टि नहीं करते हैं।)

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